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Friday, 27 December 2024

A+ 2972 ग़ज़ल आस होती है

 English 2973

Punjabi version 2974

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क़ाफ़िया इस

रदीफ़ होती है

सुकून मिलता मुझे कितना तू जब भी पास होती है।

मेरी हर शाम तू हो पास तो ही खास होती है।

कभी तनहाई में जो बैठता हूंँ याद में तेरी । 

तेरी हर याद में मिलने की मुझको आस होती है।

तू मिलकर जब चली जाती है वादा करके मिलने का।

तू क्या जाने मेरी दुनिया तो तब वनवास होती है।

इश्क की आग में जलकर बदन ये सूख जाता है।

पकड़ ले आग जाने कब ये सूखी घास होती है।

 मुझे तुम ही बताओ जिंदगी कैसे गुजारें अब।

तेरे बिन जिंदगी ये इक पल की इक मास होती है।

मिलूं चाहे मैं कितनी बार तुमसे 'गीत' मिल मिल के।

अधूरी सी मगर फिर भी तो दिल में प्यास होती है

1222 1222 1222 1222

4.25pm 27 Dec 2024

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