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Monday, 30 December 2024

A+ 2975 ग़ज़ल: कागज़ पर

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क़ाफ़िया आस 

रदीफ़ कागज़ पर

लिखा मैंने जो दिल का हाल अपना खास काग़ज़ पर।

खुले दिल के जो अब तक बंद थे एहसास कागज पर।

मैं देखूंँ होगी कब पूरी जो तुमसे ही लगाई है। 

लिखी है आज मैंने दिल की अपनी आस काग़ज़ पर।

दबा के दिल में बैठा था,सभी गम दिल के मैं अपने।

लिखे जब हर्फ़ आँसू से, बुझी तब प्यास कागज़ पर।

कभी तूने जो लिख्खा था वो खत पढ़ने जो बैठा मैं।

तेरे होने का था मुझको,हुआ अभास कागज़ पर।

मुकर जाता है वादा करके मिलने का तू मुझसे क्यों। 

तू लिख कर दे मुझे तब हो तेरा विश्वास कागज़ पर।

चली जाओगी मुझको छोड़ कर दिल तोड़ कर जो तुम मेरा।

ग़ज़ल लिखकर बिताऊंँ 'गीत' तब बनवास कागज़ पर।

6.27pm 30 Dec 2024

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