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Monday, 17 February 2025

3024 ग़ज़ल कोई पूछे मुझे


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काफिया ती

रदीफ़ है कोई पूछे मुझे


आंँख उसकी क्यों बरसती है कोई पूछे मुझे।

कौन सा वो दर्द सहती है कोई पूछे मुझे।

चुप जुबां कर ली है उसने बात लब तक आए ना।

सोच में ही कहती रहती है कोई पूछे मुझे। 

दर्द उसको था मिला वो आज तक ठहरी जहांँ।

उस जगह पर क्यों वो रहती है कोई पूछे मुझे। 

थम गई है जम गई है राह उसकी रुक गई।

क्यों नदी सी वो न बहती है कोई पूछे मुझे।

थक गया था पूछ कर मैं तब जुबां खोली नहीं।

आज मुझसे वो ये कहती है कोई पूछे मुझे।

जानता हूंँ राज़ उसके, कितनी गहरी प्यास है।

'गीत' इतना क्यों तरसती है कोई पूछे मुझे।

9.29pm 15 Feb 2025

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