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Sunday, 16 March 2025

3051 ग़ज़ल आंँसुओं की धार बन गई नदी है आजकल


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क़ाफ़िया ई

रदीफ़ है आजकल

न जाने कैसे कट रही, ये जिंदगी है आजकल।

निभा रहा है मुझसे क्यों वो बेरुखी है आजकल।

मैं फँस गया हूंँ उनसे प्यार करके जिंदगी में अब।

न मुझको जीने देती है यह आशिकी है आजकल।

हुआ है गम छुपाना भी कठिन ये कैसा दौर है।

ये आंँसुओं की धार बन गई नदी है आजकल।

लुटाया हमने जिसपे सब, वो और किसी का हो गया 

कहें भी क्या कि मतलबी सी दोस्ती है आजकल।

था कल तो उनकी जान मैं, वो आज दूर बैठा है।

हुई है बात क्या बना वो अजनबी है आजकल।

बिना मेरे न कटते थे कभी भी जिसके रात दिन

मुझे सताने कर रहा वो दिल्लगी है आजकल।

वो गिर गया मुझे सताने को है इतना, कर रहा।

थी जिससे दुश्मनी उसी से दोस्ती है आजकल।

जो कहते थे न तोड़ेंगे बना है रिश्ता अपना जो।

निभा रहा है 'गीत' से वो दुश्मनी है आजकल।

12.40pm 16 March 2025

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