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क़ाफ़िया ई
रदीफ़ है आजकल
नज़र मिली ये तबसे ही तड़प उठी है आजकल।
है महकदे का साथ छाई बेखुदी है आजकल।
है गम तुझे कोई तो वो मुझे बता मेरे सनम।
यूँ चेहरे पे तेरे छाई क्यों गमी है आजकल।
वो छोड़कर मुझे लगे हैं गैर के गले से जा।
करें मज़े वो, मेरी जान पर बनी है आजकल।
मैं घुल रहा हूँ गम में अपने, जीना रास आए ना।
नहीं है आती दूर तक नज़र खुशी है आजकल।
जिसे भी चाहा वो चला गया मुझे यूंँ छोड़कर।
ज़माना कैसा, कैसी हवा चली है आजकल।
गुज़र रही मेरी यूंँ ज़िन्दगी की क्या बताऊं मैं।
जो पढ़ना चाहो तो पढ़ लो, ग़ज़ल लिखी है आजकल।
दे धोखा तुम जो गीत को, चले हो गैर संग अब ।
कहो वो बात सच है, जो चल रही है आजकल।
5.37pm 16 March 2025
2 comments:
Very nice ji
Very nice ji
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