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Saturday, 1 March 2025

A+3036 ग़ज़ल चले जाते हैं


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क़ाफ़िया आते 

रदीफ़ हैं चले जाते हैं 

वो नजर हमसे मिलाते हैं चले जाते हैं। 

मुस्कुरा कर वो दिखाते हैं चले जाते हैं।

इक झलक उनकी जो देखी हुआ दिल दीवाना।

सोए अरमान जगाते हैं चले जाते हैं।

चाह अपनी वो कभी मिलके जुदा हो न कभी।

कुछ समां संग बिताते हैं चले जाते हैं।

चाल उनकी है जुदा, सूट है मखमल जैसा।

और दुपट्टे को घुमाते हैं चले जाते हैं।

एक तो आती नहीं, उसपे कभी आए तो।

नींद से हमको उठाते हैं चले जाते हैं।

की थी कोशिश तो बहुत भूल उन्हें जाएं पर।

याद में आ के सताते हैं चले जाते हैं।

'गीत' की चाह थी अपनी भी कहे वो दिल की।

वो तो बस अपनी सुनाते हैं चले जाते हैं।

डॉ संगीता शर्मा कुंद्रा 'गीत' चंडीगढ़ 

4.37pm 1 March 2024

Dil ki Aawaz bhi sun mere fsaane pe na ja

1 comment:

Anonymous said...

Bahut khub likha 👌👌