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Tuesday, 25 March 2025

3060 ग़ज़ल खुद को जोड़ता रहा


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क़ाफ़िया ओड़ता

रदीफ़ रहा

बनके यार वो मेरा मुझको तोड़ता रहा।

टूटकर हर इक दफा खुद को जोड़ता रहा।

वह बने नहीं तेरे, यार उसको छोड़ दे।

हर दफा ये खुद कह, मैं झिंझोड़ता रहा।

साफ दिल तेरा कभी वह तो देख पाया ना।

तुझको फूल की तरह वो मरोड़ता रहा।

काम कुछ किया नहीं हार जब मिली उसे।

हार का वो ठीकरा तुझपे फोड़ता रहा।

साथ उसका तो दिया तूने हर ही मोड़ पर।

दाँव जब लगा, तुझे वो निचोड़ता रहा।

वो तेरा नहीं था जो, ख़्वाब तूने पाला था।

उस तरफ ये जिंदगी क्यों तू मोड़ता रहा।

'गीत' जानती थी वो दूर उससे हो रहा।

ध्यान उसने ना दिया साथ छोड़ता रहा।

11.00pm 25 March 2025 

दोस्त दोस्त ना रहा प्यार प्यार ना रहा 

जिंदगी हमें तेरा ऐतबार ना रहा

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