तुम चुप रहो तो ठीक है।
बोलो तो आग सी लगती है।
तुम्हारे बोलों से शोले निकलते हैं।
और दिल की आग भड़कती है।
शोलों के भड़कने से,
दिल की बस्ती जलती है।
बहारों का इंतजार करते रहे हम,
मगर ,
फूलों को यहांँ खिज़ा निगलती है।
बहुत कोशिश करते हैं हम,
मन को समझाने की।
मगर ,बुझाने पर और भी जलती है।
सुबह का सूरज जरूर निकलता है।
मगर ,शाम भी तो ढलती है।
पहले तुम्हारी यादों में रात गुजरती थी,
अब रात भी तन्हा कटती है।
पहले हर गुलशन खिला होता था।
अब हर बस्ती वीरानी लगती है।
118 2 Nov. 1989
Tum chup raho to thik hai,
Bolo toh Aag Si lagti Hai.
Tumhari Bolon Se Sholay Nikalte Hain,
Dil Mein Aag sulagti hai.
Sholon Ki Bardkne se,
Dil Ki Basti jalti Hai.
Baharon Ka Intezar Karte Rahe Hum,
Magar, Phoolon Ko yahan Khisaa Nigalti Hai.
Bahut koshish Karte Hain Hum,
Mun Ko Samjhane ki,
Magar ,Bujhaane par aur jalti Hai.
Subah Ka Suraj Zaroor nikalta Hai,
Magar, Sham bhe to Dhalti Hai.
Aage Tumhari Yaadon Mein Raat guzarti Thi
Ab Raat bhi Tanha Kat-ti Hai.
Pehle Har Gulshan Kila Hota tha.
Ab Her Basti Virani Lagti Hai.
बोलो तो आग सी लगती है।
तुम्हारे बोलों से शोले निकलते हैं।
और दिल की आग भड़कती है।
शोलों के भड़कने से,
दिल की बस्ती जलती है।
बहारों का इंतजार करते रहे हम,
मगर ,
फूलों को यहांँ खिज़ा निगलती है।
बहुत कोशिश करते हैं हम,
मन को समझाने की।
मगर ,बुझाने पर और भी जलती है।
सुबह का सूरज जरूर निकलता है।
मगर ,शाम भी तो ढलती है।
पहले तुम्हारी यादों में रात गुजरती थी,
अब रात भी तन्हा कटती है।
पहले हर गुलशन खिला होता था।
अब हर बस्ती वीरानी लगती है।
118 2 Nov. 1989
Tum chup raho to thik hai,
Bolo toh Aag Si lagti Hai.
Tumhari Bolon Se Sholay Nikalte Hain,
Dil Mein Aag sulagti hai.
Sholon Ki Bardkne se,
Dil Ki Basti jalti Hai.
Baharon Ka Intezar Karte Rahe Hum,
Magar, Phoolon Ko yahan Khisaa Nigalti Hai.
Bahut koshish Karte Hain Hum,
Mun Ko Samjhane ki,
Magar ,Bujhaane par aur jalti Hai.
Subah Ka Suraj Zaroor nikalta Hai,
Magar, Sham bhe to Dhalti Hai.
Aage Tumhari Yaadon Mein Raat guzarti Thi
Ab Raat bhi Tanha Kat-ti Hai.
Pehle Har Gulshan Kila Hota tha.
Ab Her Basti Virani Lagti Hai.
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