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Monday, 29 May 2017

K3 00253 मंजिल तय कर ( Manzil Tay Kar)

जो होना था हो गया, रोते हो क्या सोच कर।
क्या होगा यूँ ही बैठ कर, उठ खड़ा हो जा।
कर ले नया मुकाम तय, बड़ चल मंजिल की ओर,
मत कर तू भय, इरादे जो होंगे तेरे अचल।
पा ही लेगा तू मंजिल को अपनी, यूँ ही चला चल।
नहीं उसके लिए खुशियां दूर।
जो नहीं समझता, खुद को कभी मजबूर।
253 4 Feb 1991
Manzil Tay Kar
Jo Hona Tha Ho Gaya.
Rote ho ab kya Soch kar.
Kya Hoga Ab yun hi baith kar.
uth, khada ho ja
Karle naya Mukam Tay.
Bud chal Manzil ki aur,
Mat kar tu bhay
Irade Jo hongeTere achal.
Pa hi lega tu manzil ko apni ,
Yu hi Chala Chal.
Nahi uske liye Khushiyaan Dur.
Jo Nahi samajhta
Khud Ko Kabhi Majboor.

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