क्या हालत हो गई है तेरी,
किसको दोष दें हम।
वक्त को, खुदा को, जमाने को, या तुझको।
किसी की नासमझी का नतीजा है ये,
कौन हारा है बाज़ी, कौन जीता है ये।
बिन बात के यूँ ही भटकना,
कहाँ का सलीका है ये।
क्यों मौत के पीछे भाग रहे हो,
नहीं जानते आदमी जिंदगी कैसे जीता है ये।
ग़म को अपने पीछे लगाता है ,
फिर ग़म भुलाने के लिए पीता है ये।
अपने साथ दूसरों की दुनिया को भी गमगीन बनाता है।
इंसान के रुप में चीता है ये।
इसमें कोई किसी का गुनाहगार नहीं।
खुद उसकी नासमझी का नतीजा है ये।
खुद अपने गम छुपा कर दूसरों के ग़म को,
आँसू के धागों से सीता है ये।
189 4May 1990
Kya Halat Ho Gayi Hai Teri .
Kisko Dosh Dain Hum.
Wakt ko,
Khuda Ko ,
Zamane ko
Ya Tujhko.
Kisi Ki Nasamjhi Ka Natija Hai Ye.
KOn Hara hey Bazi , Kaun Jeeta hai ye.
Bin baat ke Yunhi bhatakna,K ahan ka Salikaa hai ye.
KYoun Maut Peeche Bhag rahe ho,
Nahi Jante Aadmi Zindagi kaise zita hai ye.
Gum ko apne Peeche Lagata Hai,Phir Gam Bhulane ke Liye Peeta hai ye.
Apne s ath Dusron Ki Duniya Ko Bhi Gumgeen banata hai, Insaan ke roop Mein cheeta hai ye.
Isme Koi Kisi Ka gunehgaar Nahi.
Khud Uski Nasamjhi Ka Nateeja Hai Ye. Khud Apne Gum Chhupa ker doston Ke Gumko aanson ke Dhaagon Se Sita hai ye.
किसको दोष दें हम।
वक्त को, खुदा को, जमाने को, या तुझको।
किसी की नासमझी का नतीजा है ये,
कौन हारा है बाज़ी, कौन जीता है ये।
बिन बात के यूँ ही भटकना,
कहाँ का सलीका है ये।
क्यों मौत के पीछे भाग रहे हो,
नहीं जानते आदमी जिंदगी कैसे जीता है ये।
ग़म को अपने पीछे लगाता है ,
फिर ग़म भुलाने के लिए पीता है ये।
अपने साथ दूसरों की दुनिया को भी गमगीन बनाता है।
इंसान के रुप में चीता है ये।
इसमें कोई किसी का गुनाहगार नहीं।
खुद उसकी नासमझी का नतीजा है ये।
खुद अपने गम छुपा कर दूसरों के ग़म को,
आँसू के धागों से सीता है ये।
189 4May 1990
Kya Halat Ho Gayi Hai Teri .
Kisko Dosh Dain Hum.
Wakt ko,
Khuda Ko ,
Zamane ko
Ya Tujhko.
Kisi Ki Nasamjhi Ka Natija Hai Ye.
KOn Hara hey Bazi , Kaun Jeeta hai ye.
Bin baat ke Yunhi bhatakna,K ahan ka Salikaa hai ye.
KYoun Maut Peeche Bhag rahe ho,
Nahi Jante Aadmi Zindagi kaise zita hai ye.
Gum ko apne Peeche Lagata Hai,Phir Gam Bhulane ke Liye Peeta hai ye.
Apne s ath Dusron Ki Duniya Ko Bhi Gumgeen banata hai, Insaan ke roop Mein cheeta hai ye.
Isme Koi Kisi Ka gunehgaar Nahi.
Khud Uski Nasamjhi Ka Nateeja Hai Ye. Khud Apne Gum Chhupa ker doston Ke Gumko aanson ke Dhaagon Se Sita hai ye.
No comments:
Post a Comment