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Friday, 22 September 2017

315 महफिल (Mehfil)

तेरे आने से महफिल है मेरी सजी।
काश तुम अक्सर ही यूँ आते जैसे आए अभी।
इंल्तजा करता हूं तुमसे अक्सर मैं आने की।
क्योंकि तुम्हें सोच कर ही मैंने अपनी दुनिया है रची।
सजाया है खुद को और महफिल को तेरे लिए।
हर पल तुम्हारी तस्वीर देखूँ जो मेरे मन में है बसी।
अंदाज़ तुम्हारे बदलना चाहता था मैं मगर।
खुद को पाया वैसा जैसे तुम हो मुझमें रमी।
हर अदा जैसे मेरी तुम्हारे लिए हो गई।
जैसे मैं हूं बना तुम्हारे लिए, पर तुम मेरे लिए नहीं बनी।
315 14 Sept 1991

Tere Aane Se Mehfil Hai Meri Sazii.
Kaash Tum Aksar Hi youn aate Jaise Aaye Abhi.
Iltza Karta Hoon Tumse Aksar mein aane ki.
Kyunki Tumhain Soch kar Hi Main Apni Duniya Hai Rachi.
Sajaya Hai Khud Ko or Mehfil Ko Tere Liye.
Har Pal Tumhari tasveer Dekhun Jo Meri mun may hai Basi.
Andaaj Tumhare badlna Chahta Tha Main mager.
Khud ko paya vaise, Jaise Tum Ho Mujhmei Rumy.
Har Ada Jaise  Meri Tumhare Liye Ho Gayi.
Jaise Main Hoon Bna, Tumhare Liye,
 Aur Tum mere liye nahi Bani.

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