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Friday, 30 November 2018

754 छूटे होठों से मुस्कान नहीं (Cchoote Hothon se Muskan Nahi)

चलता रहा मैं जिंदगी की राहों पर।
माना की राहें ये आसान नहीं।
 मैं करता रहा ,डटकर सामना।
पाना था चाहे ,मंजिल को ,आसान नहीं।

 जो मैंने चाहा ,वह चाहे मिला ना मिला।
 छोड़ा पर मैंने पाने का अरमान नहीं।
जीने को ,इन राहों पर मैं बढ़ता रहा।
 छोड़ा पर मैंने मंज़िल को पाने  का अरमान नहीं।

मंजिल तो खड़ी है अपनी जगह, मिल ही जाएगी।
पर बढ़ते हुए, छोडूंगा मुस्कान नहीं।
यह भी तो है पाना एक मुकाम की तरह।
 जब राह चलते भी ,छूटे होठों से मुस्कान नहीं।
754 1 24pm 29 Nov 2018
Chalta Raha Main Zindagi Ki Rahon par.
Mana ki Rahen  Aasan Nahi.
Main Karta  Raha ,datt kar Samna.
Pana Tha chahe manzil ko Aasan Nahi.

Jo Maine Chaha wo Chahe Mila Na Mila.
Choda Par Maine paane ka Armaan nahi.
Jeene Ko In Rahon par ,mein badhta Raha.
Choda par manzil ko pane ka Armaan nahi.

Manzil To khadi hai Apni Jagah, mil hi jayegi.
Badhte Huye Chodenga Muskaan Nahi.
 Yeh Bhi Tu Hai Panna Ek Mukam Ki Tarah.
Jab Raah Chalte Bhi ,chhoote Hothon se Muskan Nahi.

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