2122 2122 2122 22
क़ाफ़िया आओ
रदीफ़ हमारा क्या है
दूर मुझसे तुम चले जाओ हमारा क्या है।
लौट के चाहे न फिर आओ हमारा क्या है।
बात गैरों से करो मिलकर उन्हें हंस हंस के।
हमको बातों में ही उलझाओ हमारा क्या है।
साथ देते हो गले मिल के सभी गैरों का।
घूंट गम का हमको पिलवाओ हमारा क्या है।
माना हम इक हो न पाए तेरे होकर भी तो।
है इजाजत तुम सितम ढाओ हमारा क्या है।
हम तो जी लेंगे तेरे बिन भी सफर में चलते।
हमको छोड़ो खुद को समझाओ हमारा क्या है।
हैं लिखे किस्मत में जो कांँटे तो उन्हें सह लेंगे।
जाके गुलशन उनका महकाओ हमारा क्या है।
भर लो अपनी सब उड़ाने चाहते जो भरना।
'गीत' किस्मत अपनी चमकाओ हमारा क्या है।
2.00pm 11 Feb 2025
1 comment:
बेहतरीन रचना
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