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क़ाफ़िया आरी
रदीफ़ देखने की चीज़ है
माना उनकी होशियारी देखने की चीज़ है।
पर अभी ईमानदारी देखने की चीज़ हैl
क्या कहें उनका हुस्न और क्या कहें उनका दिमाग।
क्या कहें सारी की सारी देखने की चीज़ है।
देख कर उसकी लगन कायल हुआ था काम का।
जो अभी तक भी है जारी देखने की चीज है।
जिसने देखी है न दुनिया, काम भी ना जानता।
उसने ली है जिम्मेदारी देखने की चीज है।
जब दबा मुंँह में मरोड़े उसका कोना वो कभी।
उस दुपट्टे की किनारी देखने की चीज है।
प्यार में उसके तड़प जब, उठती सीने में कभी।
कैसे गुज़रे दिन वो भारी देखने की चीज़ है।
पल भी हम कैसे गुजारें, टीस उठती सीने मेंं।
दिल को मांगे बन भिखारी देखने की चीज़ है।
खेल जिसकी वो सिकंदर, जीत कोई पाए ना।
'गीत' क्यों बाज़ी वो हारी देखने की चीज है।
9.13pm 9 May 2025
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