सूर्य समान तेजस्विनी है माता कुष्मांडा ।
सूर्यमंडल के भीतर में ही निवास करती माता कुष्मांडा।
अष्टभुजाएं माता की, तेज अर्जित करने की देती प्रेरणा।
उनकी मधुर मुस्कान कहती, हंसकर , हर दुख झेलना।
कुष्मांडा माता ने की है कि इस ब्रह्मांड की रचना।
उनके इस रूप का चौथे नवरात्र ध्यान है करना।
माँ कुष्मांडा की उपासना से समस्त रोग, शोक मिट जाते।
इनकी भक्ति से आयु,यश,बल और आरोग्य में वृद्धि है पाते।
माँ कुष्मांडा अति शीघ्र अल्प सेवा भक्ति से प्रसन्न हो जाती।
आज के दिन माँ की उपासना से हर सिद्धि प्राप्त हो जाती।
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
अनाहत चक्र में ध्यान लगा,करे जाप मां का आशीर्वाद पाने को हम पुन: पुन:
(अनाहत चक्र-अनाहत चक्र हृदय के निकट सीने के बीच में स्थित होता है। जो कि प्रतीकात्मक रूप से 12 पंखुड़ियों का एक कमल है, और यह 12 पंखुड़ियाँ दैवीय गुणों ,जैसे परमानंद, शांति, सुरक्षा,सुव्यवस्था ,प्रेम, संज्ञान, स्पष्टता, शुद्धता ,एकता, अनुकंपा, दयालुता ,क्षमा भाव और सुनिश्चिय का प्रतीक हैं।तथापि हृदय केंद्र भावनाओं और मनु भावनाओं का केंद्र भी है। इसके प्रतीक छवि में दो तारक आकार के ऊपर से डाले गए त्रिकोण हैं एक त्रिकोण का शीर्ष ऊपर की ओर संकेत करता है और दूसरा नीचे की ओर ।जब अनाहत चक्र की ऊर्जा, आध्यात्मिक चेतना की ओर प्रभावित होती है, तब हमारी भावनाएं भक्ति, शुद्ध ईश्वर प्रेम और निष्ठा प्रकट करती हैं । यदि हमारी चेतना सांसारिक कामनाओं के क्षेत्र में डूब जाती है तब हमारी भावनाएं भ्रमित और असंतुलित हो जाती हैं ।तब इच्छा द्वेष ,जलन, उदासीनता और हताशा हमारे ऊपर छा जाते हैं। अनाहत चक्र का रंग हल्का नीला ,जैसे आकाश का रंग होता है ।इसका समान रूप तत्व वायु है। वायु प्रतीक है स्वतंत्रता और फैलाव का ।इसका अर्थ है कि इस चक्कर में हमारी चेतना अनंत तक फैल सकती है ।अनाहत चक्र का मंत्र यम( अट) है ।जब यह चक्र असंतुलन या निष्क्रिय होता है इस चक्र के असंतुलन होने पर गुस्सा, चिड़चिड़ापन, बीपी बढ़ना स्वास ठीक से ना आना, हृदय रोग से छाती में दर्द, ज्यादा पसीना आना, नकारात्मक विचारों से घिरा रहना, जोड़ों में अकड़न जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं। व्यक्ति डरपोक हो जाता है ।वह अपनी बात बोलने में डरने लगता है। कई बार सही बात का समर्थन नहीं कर पाता।बात बात पर रो देता है।घृणा,ईर्ष्या, द्वेष की भावना होती है। सहनशक्ति कम होती है।
अनाहत चक्र के जागृत होने के फायदे यह हैं कि इससे हृदय और फेफड़ों की कार्य क्षमता को सुधार आता है ।रक्त का परिवहन यहां से होता है। अशुद्ध रक्त हृदय में पहुंचता है और शुद्ध होकर शरीर में पहुंच जाता है।हृदय को चलाने का अति आवश्यक काम हृदय /अनाहत चक्र करता है ।हृदय चक्र के संतुलन में रहने पर व्यक्ति खुश रहता है ।दूसरों के दुख दर्द को समझता है और उनकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहता है ।मन में प्रेम और करुणा के भाव आने लगते हैं और वे ऊर्जावान तथा सकारात्मक शक्ति से परिपूर्ण होता है। जीवन आनंद से भर जाता है और कोई भी स्थिति उस को दुखी नहीं करती । अपनी कल्पना शक्ति पर तथा इच्छाओं पर काबू रखता है। इस चक्र को जागृत हो जाने पर कपट, हिंसा, अविवेक, चिंता, भय जैसी भावनाओं भावनाएं दूर हो जाती है ।व्यक्ति के मन में भावात्मक संवेदनाएं जागृत हो जाती हैं।
नवरात्रि में अनाहत चक्र को कैसे जागृत करें: चौथे नवरात्र में नित्य कर्म से निवृत्त हो माता कुष्मांडा की पूजा करें और ध्यान अवस्था में बैठकर माता के मंत्र : ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं कुष्मांडायै नमः ।। का 108 बार जाप करें। इस दौरान अपना ध्यान अनाहत चक्र पर होना चाहिए ।दूसरी विधि पद्मासन लगाएं गहरी लंबी सांस लेते और छोड़ते रहें। कमर, गर्दन सीधी रखें ।जब साँस अंदर लें तब "य" का मन में जाप करें और जब निकालें तब "म" का जप करें ।अनाहत चक्र को जागृत करने के लिए रोजाना उसका उष्ट्रासन, भुजंगासन, अर्धचक्रासन ,भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए ।आसन और प्राणायाम से व्यक्ति में तेज उत्पन्न होता है और आत्मविश्वास जागृत होता है ।इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति की प्रतिभा में निखार आता है। कवि या लेखक को सफलता मिलती है।मानवता और ईमानदारी का अच्छा उदाहरण पेश होता है। व्यक्ति आत्मविश्वास से अपनी बात सबके आगे रखता है और अपनी संकल्प शक्ति से इच्छापूर्ति प्राप्त करता है ।अपनी इच्छा पूर्ति प्राप्त करने के लिए हृदय में इसे एकाग्र चित्त करें। अनाहत चक्र जितना अधिक शुद्ध होगा उतनी ही शीघ्रता से इच्छा पूर्ति होगी।
9.59am 20 Oct 2020