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Saturday, 31 October 2020

1451 लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई झावेरभाई पटेल

 वल्लभभाई झावेरभाई पटेल, सरदार पटेल के नाम से हैं लोकप्रिय।

भारत के पहले उप प्रधानमंत्री एवं महान राजनीतिज्ञ थे वो भारतीय।


भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता,भारतीय गणराज्य के संस्थापक पिता।

जिन्होंने देश हित के कार्यों द्वारा एक एक भारतीय का दिल जीता।


स्वतंत्रता संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभा, देश को एकीकृत  किया। 

 भारत के लोगों ने इस भूमिका के लिए फिर," सरदार" उनको नाम दिया।


गुजरात में जन्मे (31.10.1875)लन्दन जाकर  बैरिस्टर की पढाई की।

भारत आकर गाँधी जी से प्रेरित हो, स्वतंत्रता संघर्ष में अगवाई की।



खेडा संघर्ष (1918,गुजरात)कर भयंकर सूखे की चपेट में आए किसानों का साथ दिया। 

अंग्रेज सरकार से कर में छूट की मांग की और कर में राहत का रास्ता साफ किया।


प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान को ,जब अत्याधिक(30%) बढ़ाया।

बारडोली सत्याग्रह(1928) आंदोलन में नेतृत्व कर, अंग्रेजों से इसे (6.03%)घटवाया।



भारत के इस " लौहपुरुष" को, मरणोपरांत दिया गया सर्वोच्च "भारत रत्न"का  सम्मान  (1991)।

उनकी याद में साधु बेट पर स्थापित किया(2018),दुनिया का सबसे ऊंचा बुत (एकता की मूर्ति')स्टैच्यू ऑफ यूनिटी महान।

3.00 pm 29 Oct 2020

Friday, 30 October 2020

1450 शरद पूर्णिमा

  मां लक्ष्मी आठ रूप हैं, जिनमें धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, राज लक्ष्मी,

 वैभव लक्ष्मी, ऐश्वर्य लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, कमला लक्ष्मी एवं विजय लक्ष्मी।


दीप जलाएं और भगवान को अक्षत और रोली से तिलक लगाए।

तिलक लगाके मिठाई व चावल की खीर से भगवान को भोग लगाएं।


शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने आती हैं

जो इस दिन लक्ष्मी पूजन करता, सब मुरादें पूरी हो जाती हैं। 


शरद पूर्णिमा की सुबह-शाम स्नान कर तुलसी को भोग लगाएं। 

और तुलसी के सामने दीप जलाएं,इससे माँ लक्ष्मी प्रसन्न हो जाए। 



शाम को चंद्रमा निकलने पर विधीवत चंद्रमा की पूजा करें

भोग वाली खीर को छलनी से ढककर चंद्रमा की रोशनी में रखें। .


अगली सुबह स्नान कर उस खीर को मां लक्ष्मी को अर्पित करें।

प्रसाद के रुप में घर-परिवार के सभी सदस्यों मिल बांट सेवन करें। 


इस खीर के सेवन से उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त करेगा परिवार।। 

महालक्ष्मी प्रसन्न होकर भर देगी, घर में धन के भंडार ।।

11.34am 30 Oct 2020

शरद पूर्णिमा : अश्वनी मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा चंद्रमा इस दिन 16 कला संपूर्ण होता है

Thursday, 29 October 2020

1449 तू करता रहा मेरी संभाल

 नादानियां करता रहा मैं, तू  करता  रहा संभाल ।

तेरा था सर पे हाथ तभी तो ठीक  रहा ये हाल।


चलते फिरते आड़े तिरछे रास्तों पर।

खायी ठोकरें ,कभी जीवन हुआ मुहाल।


साथ तेरा था तो उलझने हो गई आसान।

नहीं तो रहता मैं सफर कई सालों साल।


आज जो कुछ भी हूँ, मैं तेरी कृपा है।

जो भी मैं अब कर रहा हूँ, नहीं है कोई मलाल।

4.26pm 29 Oct 2020

Wednesday, 28 October 2020

1448 (बुद्धदेव) बुधवार व्रत

 बुद्धदेव का दिन माना जाता  बुधवार ।

जो व्रत करें इस दिन, बुद्धि मिले अपार।


बुध ग्रह है ज्ञान,कार्य, बुद्धि, व्यापार का कारक।

पाता यह सब ,बुधवार जो व्रत करें है जातक।


जो भी करें बुधवार का व्रत धन की कमी ना होए ।

फिजूल खर्च से वह बचे और घर में कलेश ना होए।


इस दिन गणेश भगवान की भी पूजा करता है जातक।

बुधवार व्रत जो भी करता बुध का कुप्रभाव हो जाता समाप्त।

6.03pm 28 Oct 2020


Tuesday, 27 October 2020

1447 गज़ल : बहर

  122 122 122 12212

काफि़या ( Qafiya)अर

रदीफ (Radeef)  में

जनाजा खयालों का निकला है अब, सहर में।

 गए फंस हम तो गज़ल की यहाँ बहर में।


रहे सोचते की सही  हो  ही जाएगा सब

बुरे फंसे पर हम, यहाँ बहर की लहर में।


के कैसे कहें क्या कहें/ समझे हम कुछ नहीं

 झुकाए हैं बैठे यहाँ सर को हम कहर में।

 

हुआ दिल है सूना,के गुमसुम हुए ख्याल।

के आए हैं जब से यहाँ बहर के शहर में


कभी सोचता हूं ले ही लूँ मैं इससे तलाक 

के शायद मिले कोई अब ख्याल ही, महर में।

 

गजल  जीने भी , मरने भी तो नहीं देती है। 

है क्या गजल ए तख्ती की इस लहर के जहर में।


किया जाए क्या और कैसे किया जाए ये, 

यही सोचता ही मैं रहता हूँ हर पहर में।

12.44 22 Oct 2020

Monday, 26 October 2020

1446 जय माता शैलपुत्री

 हिमालय (शैल) के घर जन्मी माता शैलपुत्री कहलाई।

शंकर संग ब्याह रचाया माता पार्वती कहलाई।


प्रथम नवरात्रि करे कलश स्थापना हाथ जोड़।

योगी जन ,शक्ति मूलाधार में स्थित करो साधना योग।


वृषभ (बैल, नंदी) वाहन पर हो आरुण वृषभारुड़ा नाम दिया।

 बाएं हाथ में कमल और दाएं हाथ त्रिशूल लिया।


मां की जो हम करें आराधना जीवन में स्थिरता आए ।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:।

ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।

ॐ या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्रीरूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


श्रद्धा भाव से जो करें पूजा ,चाहे ना हो विधि-विधान में सक्षम।

सच्चे मन से याद करो बस ,माता हो जाती प्रसन्न।


चंद्र दोष से मुक्ति मिलती ,करो रख संयम तुम ध्यान ।

तामसिक तत्वों से मुक्ति मिलती, हो पवित्रता का आगमन।

9.26am 26 Oct 2020

Sunday, 25 October 2020

1445 जय माँ सिद्धिदात्री

 मां सिद्धदात्री के पास अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, 

गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व हैं यह अष्ट सिद्धियां ।

मां के चार  भुजाएं है और ,मां ने हाथों में 

शंख, गदा, कमल का फूल और च्रक  है धारण किया।


शास्त्रों के अनुसार, मां सिद्धिदात्री महालक्ष्मी के समान 

और सरस्वती का स्वरूप है, हैं कमल पर विराजमान।


श्वेत वस्त्रालंकार से युक्त महाज्ञान और मधुर स्वर से ।

उनका ऐसा रूप, जो  भक्तों को सम्मोहित कर दे।


महानवमी के दिन ही मां दुर्गा ने दुष्ट दैत्य महिषाषुर का संहार किया। 

संहार कर तीनों लोकों को उसके आतंक से मुक्त उद्धार किया। 

महानवमी पर मां दुर्गा को महिषाषुर मर्दिनी के रूप में भी पूजा जाता है।

मां दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा से यश, बल, धन पाया जाता है। 


मां सिद्धिदात्री की पूजा देव, यक्ष, किन्नर, दानव, ऋषि-मुनि, साधक और 

गृहस्थ आश्रम में जीवनयापन करने वाले पूजा करते हैं

माँ सिद्धिदात्री के मंत्र से –

या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अपने सब  दुख मां की कृपा से हरते हैं।

2.42pm 25Oct 2020

Saturday, 24 October 2020

1444 जय महागौरी अष्टमी

 उज्वल वस्त्र धारण किए हुए, महादेव को ,

शुद्धता की मूर्ति देवी महागौरी मंगल दायिनी का रूप, मन भाता।

महागौरी आठवीं शक्ति स्वरूपास के तेज से,

 संपूर्ण विश्व प्रकाशमान हो जाता।


शुंभ निशुंभ से परास्त देवता भी, 

जिनकी पूजा करते वह देवी महागौरी हैं।

महादेव शिव जी की पत्नी,यही शिवा,

 और शांभवी के नाम से भी पूजित होती हैं।


 मां देवी की चार भुजाएं दो पूजा अभय मुद्रा में 

एक में त्रिशूल,एक में डम डम डमरु रहता है।

जो स्त्री भी करे देवी के स्वरूप की पूजा ,

उसको माता सदा सुहागन कावर देती हैं।


कुंवारी लड़की करे पूजा तो मनभावन पति ,

और माँ भक्तों को अक्षय आनंद और तेज प्रदान कर देती हैं। 

महागौरी रूप में देवी करुणामयी, स्नेहमयी और,

शांत और मृदुल दिखती हैं,देवता भी इस रूप की पूजा करते हैं।


देवगणकहहें: सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके 

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।


और कहो: या देवी सर्वभूतेषु महागौरी रूपेण संस्थिता।

 नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।

6.40pm 24 Oct 2020

Friday, 23 October 2020

1443 जय माँ कालरात्रि

 मां कालरात्रि का शरीर काला ज्यूँ अंधकार।

 गले में पड़ी माला, चमकती बिजली समान।


अपने वाहन गदर्भ(गधा) पर बैठ किया रक्तबीज का नाश। 

ऐसे ही करें माता अकाल मृत्यु का भय और शत्रु का विनाश।।


एक हाथ में खड़ग, दूसरे लौह शस्त्र, तीसरे अभय मुद्रा चौथे वर मुद्रा।

करो माँ को अर्पण गंगा जल,गंध, पुष्प,अक्षत, पंचामृत होगी कृपा।


रूप भले भयंकर, पर देती शुभ फल और शुभंकरी कहलाई।

नाम लेते ही आसुरी शक्तियाँ हों भयभीत, है ऐसी कालरात्रि माई।


देवी काली, महाकाली ,भद्रकाली, भैरवी ,मृित्यू, रुद्रानी,

 चामुंडा, चंडी  ,रौद्री ,धुमोरना और दुर्गा रुपणी कहलाई।


सातवें नवरात्रे, माँ काली की करो पूजा, कृपा बरसेगी अपार।

ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊँ कालरात्रि दैव्ये नम:।’जपो 108 बार।

Thursday, 22 October 2020

1442 जय माता कात्यायनी

 कात्यायन ऋषि की पुत्री,  कात्यायनी फिर नाम हुआ।

इस अवतार में माता ने फिर,  महिषासुर संघार किया।


 स्वर्ण समान चमकीली चार भुजाओं वाली माँ। 

दो हाथ में खड़ग, कमल, एक अभय मुद्रा में, एक हाथ वर देने वाली माँ। 


माता का गुण है खोज करना ,वैज्ञानिक युग की यह देवी है।

 आज्ञा चक्र में स्थित हो करो साधना , माँ मनचाहा फल देती है।


मां कात्यायनी के पूजन से विवाह में आती सब बाधा दूर हो जाती।

 साधक को इस लोक में रहते हुए अलौकिक तेज प्राप्ति हो जाती।


रोग शोक संताप भय से मनुष्य को मुक्ति दे देती है।

माँ है उदार ,अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण कर देती है।


श्री कृष्ण और मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने इसी रूप की पूजा की।

गोपियों ने श्री कृष्ण को पति रूप में पाने को इसी रूप की पूजा की।

 

नवरातत्रे के छठे दिन पहन के कपड़े लाल, पीले रंग के फूल चढ़ाओ।

ध्यान करो और माँ को मधु का और मालपुओं का भोग लगाओ ।

करो उच्चारण

या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी  रूपेण संस्थिता।

 नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

9.42am 22 Oct 2020

Wednesday, 21 October 2020

1141 जय स्कंद माता

 स्कंद माता है माता का पंचम स्वरूप ।

चार भुजा वाला है माता का यह रूप ।


बाल रूप में भगवान स्कंद एक हाथ में लिए ।

दूसरे में कमल और एक हाथ उठा आशीर्वाद के लिए।


स्कंद माता ,माता का है ममतामई रूप ।

करो पूजा माँ की ,ये कर देती सब दुख दूर।


विशुद्ध चक्र में मन स्थापित कर करे साधक जो ध्यान।

 जागृत हों फिर ऐसी भावनाएं , मिले मान-सम्मान।


स्कंद माता की उपासना से साधक अलौकिक तेज प्राप्त करता है ।

अलौकिक प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता है।


पवित्र मनसे स्तुति हो तो दुखों से मुक्ति हो जाती ।

भक्तिभाव से पूजन करो तो, हर समस्या की युक्ति हो जाती।


या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंद माता रूपेण संस्थिता।

 नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

10.01am 21 Oct 2020


Tuesday, 20 October 2020

1140 जय माँ कुष्मांडा

 सूर्य समान तेजस्विनी है माता कुष्मांडा ।

सूर्यमंडल के भीतर में ही निवास करती माता कुष्मांडा।


अष्टभुजाएं माता की, तेज अर्जित करने की देती प्रेरणा।

उनकी मधुर मुस्कान कहती,  हंसकर , हर दुख झेलना।


 कुष्मांडा माता ने की है कि इस ब्रह्मांड की रचना।

उनके इस रूप का चौथे नवरात्र ध्यान है करना।


माँ कुष्मांडा की उपासना से समस्त रोग, शोक मिट जाते।

इनकी भक्ति से आयु,यश,बल और आरोग्य में वृद्धि है पाते।


माँ कुष्मांडा अति शीघ्र अल्प सेवा भक्ति से प्रसन्न हो जाती।

आज के दिन माँ की उपासना से हर सिद्धि प्राप्त हो जाती।


या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते ।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

 अनाहत चक्र में ध्यान लगा,करे जाप मां का आशीर्वाद पाने को हम पुन: पुन:

(अनाहत चक्र-अनाहत चक्र हृदय के निकट सीने के बीच में स्थित होता है। जो कि प्रतीकात्मक रूप से 12 पंखुड़ियों का एक कमल है, और यह 12 पंखुड़ियाँ दैवीय गुणों ,जैसे परमानंद, शांति, सुरक्षा,सुव्यवस्था ,प्रेम, संज्ञान, स्पष्टता, शुद्धता ,एकता, अनुकंपा, दयालुता ,क्षमा भाव और सुनिश्चिय का प्रतीक हैं।तथापि हृदय केंद्र भावनाओं और मनु भावनाओं का केंद्र भी है। इसके प्रतीक छवि में दो तारक आकार के ऊपर से डाले गए त्रिकोण हैं एक त्रिकोण का शीर्ष ऊपर की ओर संकेत करता है और दूसरा नीचे की ओर ।जब अनाहत चक्र की ऊर्जा, आध्यात्मिक चेतना की ओर प्रभावित होती है, तब हमारी भावनाएं भक्ति, शुद्ध ईश्वर प्रेम और निष्ठा प्रकट करती हैं । यदि हमारी चेतना सांसारिक कामनाओं के क्षेत्र में डूब जाती है तब हमारी भावनाएं भ्रमित और असंतुलित हो जाती हैं ।तब इच्छा द्वेष ,जलन, उदासीनता और हताशा हमारे ऊपर छा जाते हैं। अनाहत चक्र का रंग हल्का नीला ,जैसे आकाश का रंग होता है ।इसका समान रूप तत्व वायु है। वायु प्रतीक है स्वतंत्रता और फैलाव का ।इसका अर्थ है कि इस चक्कर में हमारी चेतना अनंत तक फैल सकती है ।अनाहत चक्र का मंत्र यम( अट) है ।जब यह चक्र असंतुलन या निष्क्रिय होता है इस चक्र के असंतुलन होने पर गुस्सा, चिड़चिड़ापन, बीपी बढ़ना स्वास ठीक से ना आना, हृदय रोग से छाती में दर्द, ज्यादा पसीना आना, नकारात्मक विचारों से घिरा रहना, जोड़ों में अकड़न जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं। व्यक्ति डरपोक हो जाता है ।वह अपनी बात बोलने में डरने लगता है। कई बार सही बात का समर्थन नहीं कर पाता।बात बात पर रो देता है।घृणा,ईर्ष्या, द्वेष की भावना होती है। सहनशक्ति कम होती है।

अनाहत चक्र के जागृत होने के फायदे यह हैं कि इससे हृदय और फेफड़ों की कार्य क्षमता को सुधार आता है ।रक्त का परिवहन यहां से होता है। अशुद्ध रक्त हृदय में पहुंचता है और शुद्ध होकर शरीर में पहुंच जाता है।हृदय को चलाने का अति आवश्यक काम हृदय /अनाहत चक्र करता है ।हृदय चक्र के संतुलन में रहने पर व्यक्ति खुश रहता है ।दूसरों के दुख दर्द को समझता है और उनकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहता है ।मन में प्रेम और करुणा के भाव आने लगते हैं और वे ऊर्जावान तथा सकारात्मक शक्ति से परिपूर्ण होता है। जीवन आनंद से भर जाता है और कोई भी स्थिति उस को दुखी नहीं करती । अपनी कल्पना शक्ति पर तथा इच्छाओं पर काबू रखता है। इस चक्र को जागृत हो जाने पर कपट, हिंसा, अविवेक, चिंता, भय जैसी भावनाओं भावनाएं दूर हो जाती है ।व्यक्ति के मन में भावात्मक संवेदनाएं जागृत हो जाती हैं।

नवरात्रि में अनाहत चक्र को कैसे जागृत करें: चौथे नवरात्र में नित्य कर्म से निवृत्त हो माता कुष्मांडा की पूजा करें और ध्यान अवस्था में बैठकर माता के मंत्र : ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं कुष्मांडायै नमः ।। का 108 बार जाप करें। इस दौरान अपना ध्यान अनाहत चक्र पर होना चाहिए ।दूसरी विधि पद्मासन लगाएं गहरी लंबी सांस लेते और छोड़ते रहें। कमर, गर्दन सीधी रखें ।जब साँस अंदर लें तब "य" का मन में जाप करें और जब निकालें तब "म" का जप करें ।अनाहत चक्र को जागृत करने के लिए रोजाना उसका उष्ट्रासन, भुजंगासन, अर्धचक्रासन ,भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए ।आसन और प्राणायाम से व्यक्ति में तेज उत्पन्न होता है और आत्मविश्वास जागृत होता है ।इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति की प्रतिभा में निखार आता है। कवि या लेखक को सफलता मिलती है।मानवता और ईमानदारी का अच्छा उदाहरण पेश होता है। व्यक्ति आत्मविश्वास से अपनी बात सबके आगे रखता है और अपनी संकल्प शक्ति से इच्छापूर्ति प्राप्त करता है ।अपनी इच्छा पूर्ति प्राप्त करने के लिए हृदय में इसे एकाग्र चित्त करें। अनाहत चक्र जितना अधिक शुद्ध होगा उतनी ही शीघ्रता से इच्छा पूर्ति होगी।

9.59am 20 Oct 2020

Monday, 19 October 2020

1439 जय माँ देवी चंद्रघंटा

 

माँ चंद्रघंटा स्वर्ण वर्ण है ,भूरे एवं स्वर्ण वस्त्र धारण जो जातक भी पाठ करे।

उस साधक में माँ वीरता निर्भयता के साथ, सौम्यता और विनम्रता के गुण भरे।


माता के तीन नेत्र दस हाथ इनमें कमल,गदा,बाण,धनुष, त्रिशूल,खड्डग,खप्पर,चक्कर और अस्त्र-शस्त्र हैं धारण।

या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः करो उच्चारण।


माता हो शेर पर सवार युद्ध लड़ने को ,दुख हरने को तैयार और करने को राक्षसों का संहार।

माँ चंद्रघंटा कर प्रेत बाधा दूर, दिव्य सुगंधियाँ अनुभव कर साधक को होते अलौकिक वस्तुओं के दर्शन कई बार।


माँ चंद्रघंटा की उपासना से मानव समस्त शारीरिक कष्टों से मुक्ति पा जाता है।

माँ को सफेद रंग का भोग जैसे दूध ,खीर ,शहद बहुत ही मन भाता है।


माँ चंद्रघंटा के सौम्य स्वरूप को है सुगंध बहुत ही प्रिय।

करो माता की उपासना समस्त सांसारिक कष्टों से शांति पाने के लिए।

17.50pm 19. Oct 2020

 

Sunday, 18 October 2020

1438 जय माता ब्रह्मचारिणी

 ब्रह्म होता है तप,चारणी आचरण का प्रतीक।

तप का आचरण करने वाली देवी की अर्चना

 करें हम जला कर मंगलदीप।


देवी ने, भगवान शिव को पाने को किया घोर तप।

देवी दुर्गा के इस तपस्नी स्वरूप की,

 पूजा कर ,पूर्ण हो जाते सब मनोरथ।


माता की पूजा कर होता मंगल दोष निवारण।

करो ब्रह्मचारिणी की पूजा पंचामृत, पान, सुपारी खिला।

 और करो पूजा माता की कर नीले वस्त्र धारण।


सन्यासियों के लिए इस स्वरूप की पूजा है विशेष फलदाई।

वहीं गृहस्थ में चाह है जिसको संयम, शांति की,

माता रूप में करो पूजा तो पूरी करती है महामायी।

1.15am 18 Oct 2020

Saturday, 17 October 2020

1437 डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम

 अब्दुल पाकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम ।

थे मिसाइल मैन और भारत के राष्ट्रपति महान।

भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति एवं वैज्ञानिक थे वे।

जीवन के कर्मठ योद्धा और वीर सैनिक थे वे। 


रोहिणी उपग्रह को स्थापित कर भारत को ,

अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बनाया।

अग्नि पृथ्वी जैसे प्रक्षेपास्त्र को स्वदेशी तकनीक से,

बना भारत का फिर दुनिया में मान बढ़ाया।


पोखरण परमाणु परीक्षण कर दुनिया को दिया हिला ।

शिक्षा लेखन और सार्वजनिक सेवा से था उन्हें प्यार।

वह भारत को परमाणु हथियारों में सुपर पावर बनाना चाहते थे ।

इस धरती पर भारत का नाम चमकाना चाहते थे।


तमिल भाषा में कई कविताएं लिखना ,

उनका कविता प्रेम दिखाता है।

पुस्तक"इंडिया 2020"भारत का अंतरिक्ष विज्ञान में ,

सिरमौर बनाने का दृष्टिकोण दर्शाता है।


उनकी जीवनी "विंग्स ऑफ फायर" 

भारतीय युवाओं को प्रेरणा देती है ।

 "साइडिंग सोल्स डायलॉग ऑफ द परपस ऑफ लाइफ "

उनकी पुस्तक,आत्मिक विचारों को उद्धृत कर देती है।


अब्दुल कलाम को भारत रत्न सम्मान मिला।

शिलांग में देते हुए अंतिम भाषण दुनिया से ली विदा।

उनके विचार आज भी युवा पीढ़ी को सन्मार्ग दिखाएंगे।

 उनके बतलाए रस्ते से युवा आगे बढ़ते जाएंगे।

,9.30am 17 Oct 2020

Friday, 16 October 2020

1436 गज़ल : पूछे ना कोई बात

  2212 2212 2212 2212 22

काफि़या ( Qafiya) आअ

(गैर मुरद्दफ़ गजल)

सब दूर से देखें मेरी हालत को, पर पूछे ना कोई बात।

मैं मिट गया, कर याद उसको, पर कहाँ करती कभी वो याद।


पग पग पे  ठोकर खा के मैं तो गिरता पड़ता और संभलता।

 करता रहा पाने की तुझको मैं सदा ही तो यहाँ   फरियाद।


 कैसी ये दुनिया और कैसी   रीत इस दुनिया की देखो तो। 

दुनिया की ऐसी रीत से ही,तो बना जीवन ये दिन से रात।


है घोर अंधेरा यहाँ,मुश्किल हुआ है रास्ता देखो।

पाया तो मैंने कुछ नहीं, पर हो  गया बर्बाद मैं करके प्यार ।


जाऊँ कहां मैं अब किसी भी और ऐसे मे,बता मुझको। य। 

 देखूं जिधर, जाऊँ जिधर /उस ही दिशा/ में आए है तूफान। 

14.21pm 15 oct 2020

Thursday, 15 October 2020

1435 रावण के कितने पुनर्जन्म

 

रावण चाहे सीता को उठा लाया था ।

पर उसने,सीता को हाथ भी ना लगाया था।

मति मारी गई थी उस रावण की ।

जब उसने यह बुरा कर्म कमाया था।

पर उसने किया, जो भी कर्म स्वार्थ हेतु।

 सबने देखा,उसका नतीजा भी सामने आया था।


आज फिर रावण जैसे धरती पर उद्धृत हो रहे हैं।

रक्तबीज बनके ये देखो फैल रहे हैं।

कुमति छा गई है इनके दिमाग पर ।

पल-पल देखो अपराध हो रहे हैं।

सीता,राम जैसों की  कौन सुनता है ।

शरीफ लोग किस्मत को रो रहे हैं।


क्या हर युग में रावण पैदा होते जाएंगे ।

क्या इस रक्तबीज का अंत ना हम कर पाएंगे।

धरती भारी होती जाएगी पाप से ।

क्या इसे हल्का करने को ,पुण्य ना कर पाएंगे।

 जीना मुश्किल हो गया है यहां सीता और राम का।

 रावण के और कितने पुनर्जन्म होते जाएंगे।


कुछ तो करना होगा हमको सब मिल अपराध हटाने को।

कदम तो उठाना होगा अपराधियों को मिटाने को।

सुविचारों  वाले सब मिलकर आगे आओ ।

कदम उठाओ ,दुर्मति वाले लोगों को भगाने को।

सजा जब मिलेगी, तभी होगा बंद यह सिलसिला।

कोई और कहीं से नहीं आने वाला रामराज्य लाने को।

14.38pm 14 Oct 2020

Wednesday, 14 October 2020

U1434 गज़ल : तोड़ नाता, चले सफ़र को हम

 https://youtu.be/OuIkpCzkihQ

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(थुन:  तुमको देखा तो यह ख्याल आया)

2122 1212 22  

1122 1212 112

काफि़या ( Qafiya)ओ

रदीफ (Radeef)  हुआ

देख ,क्या कुछ न जिंदगी को हुआ ।

बदली यह जिंदगी मिलन जो हुआ।


छाई थी जिंदगी में वीरानी।

आई रौनक, के सामना जो हुआ।


खो चुके आस ,जो थी मिलने की ।

फिर उजाला ,कहाँ से देखो हुआ।


तोड़ नाता, चले सफ़र को हम ।

क्यों न हमसे ,शुरू सफर वो हुआ।


 इक दफा़ ठहर जो गए थे हम।

फिर न चलने का , होंसला लो हुआ।

12.25pm 13 Oct 2020

Tuesday, 13 October 2020

1433 गज़ल : नहीं कोई भी जिसकी जिंदगी में गम नहीं

 2212 1212 2212 1212 

काफि़या ( Qafiya)अम

रदीफ (Radeef)  नहीं

ऐसा नहीं कोई भी जिसकी जिंदगी में गम नहीं।

पर इसको भाव दें बहुत ऐसे भी कोई हम नहीं।


गम और खुशी का ताना-बाना जिंदगी हरेक की।

रहती कभी भी जिंदगी देखो किसी की सम नहीं।


जी हँस के  मुस्कुरा के अपनी  जिंदगी यहाँ पे तू।

ये काटना तो जिंदगी को तोहमत से कम नहीं।


 कर शुक्रिया खुदा का नेयमत जिसने बक्शी है तुझे

उलझा रहेगा तो तू पाएगा कभी भी शम (मोक्ष, शांति) नहीं।


तू सोच कैसे जीनी है अपनी ये जिंदगी तुझे।

कोई बदल दे सोच फिर  ऐसा किसी में  दम नहीं।


क्यों देखता है रहता तू औरों को जी यहाँ वहाँ।

क्यों रंग में तू अपने ही भावों के जाता रम नहीं।

11.31am 12 Oct 2020

Monday, 12 October 2020

1432 गज़ल Ghazal : जब देखता तुझे, तो धड़कन जाती थी ये थम।

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गैर मुरद्दफ गज़ल

काफि़या( Qafiya ) अब

किस बात का करूं ,बता तुम पर यकीन अब।

 क्या क्या नहीं हुआ, तुम्हारे थे करीब जब।

 

जब देखता तुझे, तो धड़कन जाती थी ये थम।

जल जाते देख कर तू आती  थी,करीब जब।


कुछ देर जो ना देखूं बन जाती थी जान पे।

सच में तुम्हें देखना ही होता था नसीब तब।


क्या दिन थे वो भी, जब कोई अपना ना था यहाँ।

मेरे सभी थे , जिंदगी में हाँ रकीब जब।


 तुम पास थे ,था हर नजारा जवां यहाँ।

था आसमान भी नजर आता ,हसीन तब।

7.24pm 11 Oct 2020

Sunday, 11 October 2020

1431 गज़ल : आखिरी शायद समाँ है

 2122 2122

काफि़या( Qafiya) हाँ

रदीफ। (Radeef)   है

क्यों तड़पते हम यहाँ हैं ।

दूर वो इतनी वहाँ हैं।


साथ पूरा हो गया ,अब,

पल दो पल का साथ था अब,

मुद्दतों की दूरियाँ हैं।


खुद से अब मैं क्या कहूँ जब।

कुछ नहीं कहती  जुबाँ है।


माँ गई जब छोड़कर सब ।

हो गया सुना जहां है।


कर करम तू ,छोड़ कर सब

आ वहाँ से, तू जहाँ है।


रुक रही है साँस अब तो

आखिरी शायद समाँ है।


अब न कोई बात होगी।

तुम वहांँ और हम यहाँ हैं।

फिर न कोई बात होगी ।

हम कहाँ फिर तू कहाँ है।

11.35am 11 Oct 2020

Saturday, 10 October 2020

1430 आए याद हमेशा वह, चाहे हों उस पार

 कुछ लोगों से स्नेह कभी हो जाता आपार। 

 हो जाता है जिनके बिना रहना फिर दुश्वार।


प्रेम में यूँ मन फँस जाता है ये फिर इतना,

भूलना चाहो,फिर जितना,,याद आता हर बार।


चाहे कितनी भी तुम कोशिश कर के देखो।

कोई भूल ना पाए ,हो जाता जो ये प्यार।


आना जाना प्रेम,प्रसंग में रहता है लगा।

सुख-दुख के ही मणकों से ये बना है संसार।


इस दुनिया की रीत ही ऐसी है संगीता।

आए याद  हमेशा वह चाहे हों उस पार।

10.13am 10 Oct 2020 Saturday 

Friday, 9 October 2020

1429 चाँद और सूरज (3 liner)

 सब तुझको चाँद की तरह कहते हैं।

क्या तुमको सूरज सा नहीं कह सकते।

सूरज का क्या ताप ही दिखाई देता है ।


वह जो रोशन करता चाँद,सितारों को ।

रोशन करता दुनिया भर के नजारों को।

क्या उसका गुण नहीं दिखाई देता है।


ऐसे ही मेरा जीवन तुझसे रोशन है।

जो मैं कह दूँ, तुमको सूरज सा तो,

क्या उसकी गर्मी का ही ख्याल आता है ।


क्या चाँद बोलने पर ध्यान नहीं आता ,

रूप बदले हर दिन,अपनी कोई रोशनी नहीं ,

सूरज से ही पाकर रोशनी, जो चमकता है।


 मैं तो कहना चाहता हूंँ,तुमको सूरज।

 क्योंकि तुझसे ही है मेरा जीवन रोशन ।

तुमसे ही तो मेरा जीवन चलता है।


तुम चाहे गर्म हो जाओ मुझ पर,

पर मानता हूँ ,मैं उसको उपकार। 

क्योंकि सौदा फिर भी फायदे का रहता है ।


ठंडक में गर्मी  भी चाहिए।

सब वनस्पतियाँ सूरज से ही हैं। 

मेरा तापमान तुझसे ही सम रहता है।

11.24 am 09 Oct 2020


Thursday, 8 October 2020

1428 मेरे प्यारे पापा (पापा की बेटी) Daughters Day Special

 दो ही आंखें ऐसी थी ।

जो मेरे पैदा होने पर चमकी थी।


नाच नाच के खुशी मनाई थी। 

हॉस्पिटल में ही धूम मचाई थी।


सब टक टकी लगा देख रहे थे उसकी ओर ।

लेकिन वह था खुशी के मारे भाव विभोर।


उसके आंगन में खिली थी नन्ही कली ।

उसके दिल में मची इक खलबली।


मचल रहा था उसको बाहों में लेने को।

सीने से लगा ,अरमान पूरे करने को।


धन्य हुई  मैं  पाकर ऐसे पापा को।

चाहूं हर बेटी के ऐसे ही पापा हों। 


मेरे पापा करते मेरी हर विश पूरी।

सब लुटा देते कि  रह जाए ना अधूरी।


मैंने पाया उनको मेरे लिए हमेशा खड़ा ।

कोई हीरो नहीं मेरे लिए उनसे बड़ा।


क्या सभी को मिलते हैं ऐसे पापा।


कुछ तो होंगी तरसती हैं आंखें।

बाप का प्यार पाने को मचलती आंखें।


जिन आंखों में रहती होगी तमन्ना हमेशा।

 कि उनके घर आए तो बस बेटा।


कितना दुखी होता होगा उस बेटी का दिल ।

जो सामने देख भी पापा से ना पाती होगी मिल।


बस निहारती होगी दूर से। 

सोचती होगी यह दूरी है किस कसूर से।


पड़ती होगी कभी प्यार की नजर ।

तो आ जाती होगी चेहरे पर चमक।


चाहत है हर बेटी को मिले ऐसे ही पापा ।

जो चाहे यूं ही बेटी को हमेशा।


मेरी है बस यही तमन्ना ।

हर जन्म में तुम ही मेरे पापा बनना।

9.45am 08 Oct 2020

Wednesday, 7 October 2020

1427 गज़ल : कर दिया सब समर्पित

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गैर मुरद्दफ गज़ल

काफि़या( Qafiya) आरा

चाहे कोई कुछ भी कहता मैं तो हूं हरदम तुम्हारा ।

मुझ को क्या लेना देना जब प्यार तेरा है हमारा।


 क्या मैं देखूं और, जब है पास मेरे प्यार तेरा।

जान मेरे प्यार को तो बस तेरा ही है सहारा।


क्या कभी ऐसा भी हुआ, मैंने सुना ना हो तुझे जो

हरदम आया मैं वहाँ जब जब मुझे तुमने पुकारा।


यार तुझसे जो हुआ है प्यार अब क्या मैं बताऊँ। 

जो हुआ इक बार तुमसे, अब ये ना होगा दुबारा।


कर दिया जब सब समर्पित और क्या बाकी यहाँ है

इसपे हो जाए  किसी और का तू, ये ना है गवारा।

4oct 2020

Tuesday, 6 October 2020

1426 गज़ल: सोचना छोड़ दे

2122 1122 1122

(गैर मुरद्दफ गज़ल)

 काफि़या( Qafiya) आन

 क्यों नहीं होती मेरी मुश्किलें आसान ,

जब भी देखो मेरा दिल रहता  परेशान।


क्या करूं क्या नहीं  ,आए ना समझ 

सोचता ही  है ये रहता हो के हैरान।


कितनी  जिंदगी बीती देखते देखते 

क्या क्या ना हुआ  इन सब के ही दौरान।


आज तक चल ही रहा था सुकून से सब

फिर आ जीस्त में गया कैसा ये तूफान


 सोचना छोड़ दे इस बारे में अब तू। 

  ये तो चलता ही रहेगा यूँ ही जाहान

11.24pm 4 oct 2020

Monday, 5 October 2020

1425 तू ही मेरा हमसफ़र हमसाया है

 जब से तू मेरे सपने में आया है ।

तब से तू मेरे दिल पर छाया है।


जब भी सोचूँ कभी तेरे बारे में मैं।

 यादों ने तेरी मुझ को तड़पाया है।


बंद आंखों से भी देखूं तस्वीर तेरी।

खोलूँ आंखें तो, तेरा ही साया है।


खेले है जिंदगी , कैसे कैसे खेल ।

जीस्त ने मुझे कितना भरमाया है।


आके जरा मिल  और कर ले तू पहचान।

 अब तो तू ही मेरा हमसफ़र हमसाया है।

11.40am 5 Oct 2020

Sunday, 4 October 2020

1424 बनके बैठे जब हम बुत तो

 बनके बैठे जब हम बुत तो ,

सब तब हम को निहार रहे थे।

आंँखें जब से खोली हमने ,

आँखें फेर के सब बैठे हैं।


जब मुंह में ना थी जु़बान अपने ।

सब बोला करते थे हमसे।

जब से हमने मुँह खोला है।

अब सब दुश्मन बन बैठे हैं।


क्या दस्तूर है यह दुनिया का ।

पहचाने तो कैसे कोई।।

चुप थे तो सब ठीक था ,बोले 

तो हम आफत बन बैठे हैं।

11.18 pm 3 Oct 2020

Saturday, 3 October 2020

1423 छूट जाएं यह सांसे जाने किस शाम को

 क्या करें कैसे करें अब काम को ।

छोड़कर अब सारे आराम को।


अब हौसलो ने जवाब दे दिया ।

थाम नहीं पाता हूं अब लगाम को।


इस टूटी आस का क्या करूं।

तुम भी ना छोड़ देना इस नाकाम को।


गर्दिशों में है अब हर एक पल मेरा।

 छूट जाएं यह सांसे जाने किस शाम को।

3.33pm 3 Oct 2020

Friday, 2 October 2020

1422 चाह जो ना थी मंजिल को पाने की

  Oct 2020

तू मेरे सामने रहे जो इस कदर 

तो किसे होश है कहीं और जाने की।


जब हुए हैं हम तेरे प्यार में दीवाने।

तो किसे होश हो यहां फिर जमाने की।


 रास्ते खो गए सभी भटकते भटकते ।

किसी ने कोशिश न की ठिकाने पहुंचाने की।


थे हजारों तूफान राहों में पर परवाह नहीं की ।

चाह जो ना थी जब मंजिल को पाने की।

11.40. 1 oct 2020


Thursday, 1 October 2020

1421 फर्क क्यों है

आदमी और औरत में यहाँ  इतना फर्क क्यों है।

 रहते हैं एक ही जमीं , तो होता फर्क क्यों है।


 औरत खुला देखते आदमी को, झुका लेती है नजरें ।

पर आदमी की  पुतलियों में आ जाता  फर्क क्यों है।


जब बनाया खुदा  ने जहां  सभी के ही लिए है ।

फिर आदमी  बड़ा खुद को समझ करता फर्क क्यों है।


क्या खास है उसमें , जो जुल्म करता है दूसरों पर ।

खुद पे आ जाती है बात, तो बर्तता फर्क क्यों है।


मुंह से है बोलता, ये जहां है सभी के लिए एक पर।

फिर ये बोलने और होने में करता फर्क क्यों है।

10.25am 1 Oct 2020