आदमी और औरत में यहाँ इतना फर्क क्यों है।
रहते हैं एक ही जमीं , तो होता फर्क क्यों है।
औरत खुला देखते आदमी को, झुका लेती है नजरें ।
पर आदमी की पुतलियों में आ जाता फर्क क्यों है।
जब बनाया खुदा ने जहां सभी के ही लिए है ।
फिर आदमी बड़ा खुद को समझ करता फर्क क्यों है।
क्या खास है उसमें , जो जुल्म करता है दूसरों पर ।
खुद पे आ जाती है बात, तो बर्तता फर्क क्यों है।
मुंह से है बोलता, ये जहां है सभी के लिए एक पर।
फिर ये बोलने और होने में करता फर्क क्यों है।
10.25am 1 Oct 2020
3 comments:
Good one
Good one
Thanku ji
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