लाल बहादुर शास्त्री हैं भारत देश की इक ऐसी संतान ।
"सादा जीवन उच्च विचार "अपना कर बन जो गए महान।
मुगलसराय (1904)में जन्मे, खो दिया बचपन में पिता (मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव, शिक्षक)का प्यार।
शिक्षा हासिल करने को, स्कूल गए,,नंगे पाँव गर्म सड़क पर चल और तैर के गंगा पार।
काशी पीठ से जब ली "शास्त्री" की उपाधि जातिसूचक को फिर दिया उतार।
"शास्त्री " बन गया "लाल बहादुर" का पर्याय,और "ललिता" के संग लिया ब्याह रचा।
स्वतंत्रता सेनानी बन अंग्रेजों का प्रतिकार किया और गांधीजी का साथ दिया।
असहयोग आंदोलन(1921),दांडी यात्रा(1930)और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में भाग लिया।
"मरो नहीं मारो" का नारा देकर स्वतंत्रता क्रांति को पूरे देश में प्रचंड किया।
जेल भी गये और फिर स्वतंत्रता पश्चात राजनेता बन भारत को अखंड किया।
विदेश मंत्री, गृह मंत्री, रेल मंत्री के बाद जब प्रधानमंत्री का पद संभाला।
भारत-पाक युद्ध ( 1965 ) में किया दुश्मन का सामना बनकर ज्वाला।
कोमल हृदय, प्रबल विचार, लाठी की जगह, शुरू कराई पानी की बौछार।
देश में भुखमरी थी देखी फैली, खुद ही कर दिया अपने वेतन का परित्याग।
सब देशवासियों से आह्वान किया फिर, सभी रखें व्रत हफ्ते में एक बार।
वह जानते थे हर एक देशवासी के योगदान से ही होगा देश का उद्धार।
"जय जवान जय किसान" का नारा देकर भारत का उत्थान किया।
श्वेत क्रांति को बढ़ावा देकर, देश में दूध उत्पादन बढ़ाने में योगदान दिया।
लाल बहादुर शास्त्री की छोटी सी कद काठी पर भीतर से वह चट्टान था।
जिसकी दूरदर्शिता और इमानदारी के हाथों दूर नहीं भारत का उत्थान था।
वह बुरा दिन भी आया ,जब युद्ध विराम समझौता करने को ताशकंद में उन्हें बुलाया।
जीती भूमि ना थे वह देने को तैयार, शायद इसीलिए धोखे से ले ली उनकी जान ।
"नन्नहें" छोड़ गया भारत की मिट्टी में इक ना भरने वाला खाली स्थान।
सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिए मरणोंप्रांत दिया भारत रत्न सम्मान।
12.22pm 30Septembee 2020
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