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Monday, 21 September 2020

1411 गज़ल : (Gazal) गैरों के नाम ,कर तुम शाम देते हो

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काफि़या ( Qafiya)आम

रदीफ (Radeef)  देते हो

हमें खुद बेहुदा काम देते हो। 

उसी का क्या  ये फिर ईनाम देते हो।


मिटे देखो तुम्हीं  पे हम दिलो जां से ।

कि बदनामी इसे अब नाम देते हो।


तुम्हें जिस बात का होना  गुमां था ना।

उसी इक बात पर इल्जाम देते हो।


हमीं इल्जाम देने के लिए हैं क्या।

गैरों के नाम ,कर तुम शाम देते हो।


 खुशी से साथ रहना चाहते हैं हम। 

 हमें पर तुम, गमों के जाम देते हो।


हमारे प्यार को ठुकरा दिया तुमने

ये और ऐलान सर ए आम देते हो।


12.10pm 21 Sept 2020

4 comments:

Unknown said...

बहुत बढ़िया , बहुत सुंदर रचना 👍 अनुपमा




Unknown said...

अपनों के नाम आसमान कर देते हो।

Dr. Sangeeta Sharma Kundra "Geet" said...

धन्यवाद

Dr. Sangeeta Sharma Kundra "Geet" said...

धन्यवाद