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Monday 28 September 2020

1418 शांत हो जाए लो यह जल के (कता)

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तुम बिन रहना है अब मुश्किल।

तुम बिन रह कर मैं मर जाऊं।

कैसा जीना है तेरे बिन।

अब क्या तुमको मैं बतलाऊँ।


क्या तुम देख नहीं सकते हो। 

मेरे अरमानों को फलते।

छोड़ के जाओगे क्या अब तुम।

राह में मुझको चलते चलते।


मैं रह जाऊंगा क्या अब इन ,

राहों पर हाथों को मलते।

मत छोड़ो अब मुझको ऐसे,

दीपक है बुझे,  जैसे जलते।


पानी दे दो अब बस मुझ को।

 शांत हो जाए लो यह जल के।

क्या करना है बस अब जी के ।

इस धरती पर बोझा बन के।

10.46pm 27 September 202

3 comments:

Unknown said...

ये रचना मेरे लिए ये थोड़ा पर्सनल हो गई है।
मुझे रुला गई।
2 वर्ष पूर्व मेरी धर्मपत्नी का हार्टफेल हो गया था।बिना किसी वजह के । तव देख रही थी ।अपने कॉलेज की सहेली से 15 मिंट तक मजे में बात की और फोन रखा और फिर-----

satrupa said...

Bahut hi badhiyaa.

Sangeeta Sharma Kundra said...

धन्यवाद