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Thursday, 24 September 2020

1414 गज़ल : दिल को थामे मैं हूँ खडा़ तू बन संवर के आ

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काफि़या (Qafia) आ

रदीफ (Radeef) के आ

यादों में तेरी खोया हूँ सपने तू भी सजा के आ।

आ बन संवर के तू, चांद सितारे लगा के आ।


दिल को थामे  मैं हूँ खडा़ तू बन संवर के आ।

गेसुओं को तू खोल के अपनी मांग सजा के आ।


झूमति हुई तू जब चले दिल मेरा थम सा जाए ।

आ तू मेरे पास ज़रा ,आ तू बलखा के आ।


किसी की हम को क्या है पड़ी हम तो बस एक हैं।

सारे भरम को छोड़ के दिल से दिल मिला के आ।

10.08am 24 Sept  2020

4 comments:

Unknown said...

वाह, उत्तम कविता। कल्पनाओं की सुंदर, सरल और शालीन अभिव्यक्ति। इसे मैन सेव कर लिया है।

Unknown said...

वाह, उत्तम कविता। कल्पनाओं की सुंदर, सरल और शालीन अभिव्यक्ति। इसे मैन सेव कर लिया है।

Unknown said...

वाह, उत्तम कविता। कल्पनाओं की सुंदर, सरल और शालीन अभिव्यक्ति। इसे मैन सेव कर लिया है।

Dr. Sangeeta Sharma Kundra "Geet" said...

धन्यवाद जी