1222 1222 122
काफि़या (Qafiya) आकर Aakar
रदीफ़ (Radeef) आ रहे हैं (Aa Rahe Hain)
बहाने वह बनाकर आ रहे हैं।
कहाँ वो दिन बिता कर आ रहे हैं।
कभी निकले बता कर जो न घर से ।
अजी अब तो बता कर आ रहे हैं।
अजब गर्मी के इस माहौल में भी।
वो चिंगारी लगाकर आ रहे हैं
हमें तो प्यार था उनसे ,कहाँ वो ,
मेरी बातें बना कर आ रहे हैं
रही जिनको हर इक बारी थी जल्दी ।
वे शिद्दत से सुना कर आ रहे हैं।
न जाने क्या मोहब्बत है मेरे से ।
मुझे फिर से सताकर आ रहे हैं।
कभी जो देख सकते थे ना आँसू।
हमें देखो रुला कर आ रहे है।
No comments:
Post a Comment