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Monday 14 September 2020

1404 गज़ल (Gazal) चिंगारी लगाकर आ रहे हैं

1222 1222 122

काफि़या (Qafiya) आकर Aakar

रदीफ़ (Radeef) आ रहे हैं (Aa Rahe Hain)


बहाने वह बनाकर आ रहे हैं।

कहाँ वो दिन बिता कर आ रहे हैं।


कभी  निकले बता कर जो न घर से ।

अजी अब तो बता कर आ रहे हैं।


अजब गर्मी के इस माहौल में भी।

वो चिंगारी लगाकर आ रहे हैं


हमें तो प्यार था उनसे ,कहाँ वो ,

मेरी बातें बना कर आ रहे हैं

 

 रही जिनको हर इक बारी थी जल्दी ।

 वे शिद्दत से  सुना कर आ रहे हैं।


न जाने क्या मोहब्बत है मेरे से ।

मुझे फिर से सताकर आ रहे हैं।



कभी जो देख सकते थे ना आँसू।

हमें देखो रुला कर आ रहे है।

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