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Tuesday, 8 September 2020

1398 नज़म : दिल किया तेरे हवाले ,जान भी की है

 और कितना हराना चाहता है तू मुझे ।

जबकी मैं खुद को ही हार चुका हूँ तुझे।


दिल किया तेरे हवाले ,जान भी की है।

और  बता दे तू क्या क्या मैं दूँ तुझे।


जब से चाहा मैनें ,बस चाहा है तुझे।

कर चाहे जितने सितम, पूजता हूँ तुझे।


चाहा था गर्दिशों में कोई साथ देगा ।

हर दम मैं वक्त का मारा लगा हूँ तुझे।


हर किसी का एक रोज़ वक्त आता है यहाँ।

 अब  इस बात का भी क्या , सबूत दूँ तुझे।


वह वक्त आएगा जिंदगी में कभी ना कभी।

जैसे मैं याद करता हूँ ,करेगा तू मुझे।

10.22pm 8 September  2020

4 comments:

vivo said...

Bahot khub ji

Unknown said...

Bohut achi likhi hai aapne. Keep entertaining us

Unknown said...

Bohut achi likhi hai aapne. Keep entertaining us

Unknown said...

अच्छी तुकबन्दी है और कमाल की बात तो ये है कि धीरे धीरे पढ़ो तो मजा ये है शब्द सरल हैं किंतु भावनाएं गहरी हैं। दिल को छू लेने वाली रचना।