क्यों समझता है ये तू ,कि प्यार तेरा खो जाएगा।
समझ आ जाएगा तुझे,जब तू किसी का हो जाएगा।
जिंदगी तो सफर की तरह है, यह तो चलती जाएगी।
संभाल के रख सामान ,नहीं तो यह खो जाएगा।
यह तो तेरे खुद पे है ,तू जिंदगी जीता है कैसे ।
कोई हँस के काट लेगा ,कोई यहाँ रो जाएगा।
चाहे बना तू आशियाने ,चाहे कर दौलत खड़ी ।
पीछे छूट जाएगा सब,जब दूसरे जहां को जाएगा।
छोड़ दे यहाँ का यहाँ ,जब उस जहान को जाएगा।
मुक्त होगा मोह माया से ,मुक्ति तभी तो पाएगा ।
यह समझ ले तू,कुछ भी यहाँ सदा के लिए नहीं है।
समझ गया इस बात को जो ,मुक्ति यहाँ वो पाएगा।
कुछ समझेगा नहीं, जब तक फँसा रहेगा तू फेर में ।
छोड़ देगा जब यह बातें समझ तब ही तो आएगा।
9.22am 10September 2020
1 comment:
अनोखी रचना ।
विरक्ति पैदा करने वाली कविता ।
सराहना इसलिये भी की जान चाहिए कि एकदम शुद्ध सत्य से भरपूर है और आत्म साक्षात्कार कराने वाली रचना।
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