बनके बैठे जब हम बुत तो ,
सब तब हम को निहार रहे थे।
आंँखें जब से खोली हमने ,
आँखें फेर के सब बैठे हैं।
जब मुंह में ना थी जु़बान अपने ।
सब बोला करते थे हमसे।
जब से हमने मुँह खोला है।
अब सब दुश्मन बन बैठे हैं।
क्या दस्तूर है यह दुनिया का ।
पहचाने तो कैसे कोई।।
चुप थे तो सब ठीक था ,बोले
तो हम आफत बन बैठे हैं।
11.18 pm 3 Oct 2020
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