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Sunday, 4 October 2020

1424 बनके बैठे जब हम बुत तो

 बनके बैठे जब हम बुत तो ,

सब तब हम को निहार रहे थे।

आंँखें जब से खोली हमने ,

आँखें फेर के सब बैठे हैं।


जब मुंह में ना थी जु़बान अपने ।

सब बोला करते थे हमसे।

जब से हमने मुँह खोला है।

अब सब दुश्मन बन बैठे हैं।


क्या दस्तूर है यह दुनिया का ।

पहचाने तो कैसे कोई।।

चुप थे तो सब ठीक था ,बोले 

तो हम आफत बन बैठे हैं।

11.18 pm 3 Oct 2020

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