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Friday, 2 October 2020

1422 चाह जो ना थी मंजिल को पाने की

  Oct 2020

तू मेरे सामने रहे जो इस कदर 

तो किसे होश है कहीं और जाने की।


जब हुए हैं हम तेरे प्यार में दीवाने।

तो किसे होश हो यहां फिर जमाने की।


 रास्ते खो गए सभी भटकते भटकते ।

किसी ने कोशिश न की ठिकाने पहुंचाने की।


थे हजारों तूफान राहों में पर परवाह नहीं की ।

चाह जो ना थी जब मंजिल को पाने की।

11.40. 1 oct 2020


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