Followers

Tuesday, 8 May 2018

Z 550 बरसात

9788189331894 53095 BookZindgi1

नींद मेरी को तोड़ गया गड़गड़ाता बादल।
उठकर देखा तो चारों ओर थी हलचल हलचल।
हर जगह थी पानी से लथ पथ ।
चारों ओर थी हलचल हलचल।

भाग रहे थे लोग इधर उधर।
हर तरफ सब कुछ गया था बिखर।
पत्ते टूटे पेड़ टूटे।
पंखुड़ियां उड़ रही थी इधर उधर।

कहीं कुछ टूटा कहीं कुछ गिरा।
पता नहीं दिल टूटा या घर गिरा।
संभाल रहे थे सब एक दूसरे को
पर टूटा दिल फिर जुड़ा किधर।

बैठे हैं सब मन मार के।
 सब कुछ गया था बिखर।
कुछ यहां गिरा, कोई वहां गिरा।
 अब कुछ रही ना खबर।

घर टूटे या दिल टूटे।
 फिर जाने कब बनेंगे।
आंधी आई सब बहा ले गई।
 ना जाने ये फिर कब जुड़ेंगे।

No comments: