दौड़ता फिर रहा हूँ, इधर से उधर ,
जिंदगी की शाम है,ढलने लगी ।
सोचता हूँ करूँगा आराम यह करके ,
हर रोज नयी ख्वाहिश है पलने लगी ।
भागता ही रहता हूँ इधर से उधर,
रास्ता मंजिल का कम होता नहीं।
छाँव ढूंढता हूँ रहता, मैं ठंडी कोई ,
राह में पर ऐसा कोई पेड़ होता नहीं ।
कब तक यूँ ही चलता रहूंगा मैं,
आस रुकने की दिल में लिए ।
क्या तभी रुकूंगा मैं जब ,
बुझ जाएंगे जिंदगी के दिये।
समझ है मुझे सब मगर मैं
मानता नहीं अपने दिल की कभी ।
कैसे सुनुँ बात इसकी मैं ,
शोर ही शोर है हर तरफ हर कहीं।
बहुत बो लिये तमन्नाओं के बीज,
नहीं चाहता मैं और इनको बोना ।
मिले आराम पल भर को मुझे अब,
चाहता हूँ कुछ देर शांति से सोना।
10.07pm 18 June 2021
1 comment:
good
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