घर के उस कोने में पड़ी छोटी सी बंद अलमारी।
जिस पर हो रखी है बड़ी ही प्यारी कलाकारी ।
पर वह उस कोने में पड़ी है बरसों से ऐसे ही,
मुझे लगता है वह कुछ है अधिक ही भारी।
क्या बंद कर रखा है उसमें कुछ ऐसा ,
किसकी यादों से भरी है वह अलमारी।
मेरी तरह क्या किसी और का ध्यान भी खींचती है ,
या मुझे ही लगी है ऐसी बीमारी।
देख ही डालूँ क्या भीतर है आज तो,
बैठे-बैठे यूँ ही मन में उठ गई चिंगारी।
तोड़ डाला फिर ताला उस अलमारी का।
जैसे अंत कर दिया हो मैंने अपनी बेकरारी का ।
भीतर देखा कुछ पन्ने पड़े हुए हैं,
कुछ बंधे कुछ यूं ही बिखरे हुए हैं।
क्या समेटूं कैसे समेटूं इनको ।
अक्षरों पर जब पड़ी नजर तो लग रहा था ,
किसी के प्यार के अफसाने हैं।
जान तो पा रहा था मैं कि,
यह आज के नहीं ,सदियों पुराने हैं।
आज जमाना बदल गया ,
मोबाइल पर होती है दिल की बातें ।
और फिर मोबाइल खो जाते हैं ,
साथ ही खो जाती हैं उनके साथ की गई बातें।
यह पन्नों पर लिखी बातें तो अमर हो गई ।
लोग जाने कहाँ खो गए जिंदगानीयां खो गई ।
पर ,उन के अफसाने,
यहीं हैं..... यहीं हैं.... यहीं हैं....।।।
7.50pm 21 June 2021
1 comment:
बहुत सुंदर सृजन
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