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Monday, 21 June 2021

1684 अलमारी

 घर के उस कोने में पड़ी छोटी सी बंद अलमारी।

जिस पर हो रखी है बड़ी ही प्यारी  कलाकारी ।

पर वह उस कोने में पड़ी है बरसों से ऐसे ही,

मुझे लगता है वह कुछ है अधिक ही भारी।

क्या बंद कर रखा है उसमें कुछ ऐसा ,

किसकी यादों से भरी है वह अलमारी।

मेरी तरह क्या किसी और का ध्यान भी खींचती है ,

या मुझे ही लगी है ऐसी बीमारी।

देख ही डालूँ  क्या भीतर है  आज तो,

बैठे-बैठे यूँ ही मन में उठ गई चिंगारी।

तोड़ डाला फिर ताला उस अलमारी का।

जैसे अंत कर दिया हो मैंने अपनी बेकरारी का ।

भीतर देखा कुछ पन्ने पड़े हुए हैं,

कुछ बंधे कुछ यूं ही बिखरे हुए हैं।


क्या समेटूं कैसे समेटूं इनको ।


अक्षरों पर जब पड़ी नजर तो लग रहा था ,

किसी के प्यार के अफसाने हैं।

 जान तो पा रहा था मैं कि,

 यह आज के नहीं ,सदियों पुराने हैं।

 आज जमाना बदल गया ,

मोबाइल पर होती है दिल की बातें ।

और फिर मोबाइल खो जाते हैं ,

साथ ही खो जाती हैं उनके साथ की गई बातें।

यह पन्नों पर लिखी बातें तो अमर हो गई ।

लोग जाने कहाँ खो गए जिंदगानीयां खो गई ।

पर ,उन के अफसाने,

 यहीं हैं..... यहीं हैं.... यहीं हैं....।।।

7.50pm 21 June 2021

1 comment:

Rashmi sanjay said...

बहुत सुंदर सृजन