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Saturday, 19 June 2021

1682 कर्म ही पूजा है

 सुबह थी तब कुछ भी सोचा नहीं ,

धूप बढ़ती गई ,मैं थक सा गया।

साथ ही जिम्मेदारियों का भी,

बोझ मुझ पर और बढ़ता गया।


सोचा सब छोड़ छाड़ के चलुँ,

यह सोचने से भी बोझ बढ़ता गया ।

चल पड़ा हूँ फिर बोझ कम करने को ,

मैं इस तरह फिर आगे बढ़ता गया।


सफर चाहे शुरू हुआ इस तरह ,

कि जिम्मेदारियां पड़ी सर पर मेरे ।

पर इन्हीं जिम्मेदारियों की बदौलत,

मैं आगे ही आगे बढ़ता गया।


मुकाम पाया जिसका अंदाजा न था, 

कर्म को पूजा मैंने ,सम्मान बढ़ता गया।

सब छोड़ सिर्फ कर्म की पूजा में ही ,

मैं आगे ही आगे बढ़ता गया।

6.48 pm 19 June 2021

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