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Tuesday 29 June 2021

1692 गज़ल Ghazal :अपने खुदा से प्रीत मुझ को भा रही

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काफि़या आ Qafia Aa

रदीफ़ रही, Radeef rhi

मुड़ मुड़ के देखो याद तेरी आ रही ।

ऐसे भला तू क्यों मुझे तड़पा रही ।


जो दर्द मेरे दिल को तूने हैं दिए।

हर जख्म की है पीक रिस के आ रही ।


नासूर बन के जख्म मेरे जो बहे ।

अब जीस्त मेरी देख कर घबरा रही ।


तेरे हवाले छोड़ जाऊँ ये जहां ।

अब मौत मेरी पास मेरे आ रही ।


हर इक तमन्ना इस जहां की छोड़कर ,

अपने खुदा से प्रीत मुझ को भा रही।

5.45pm 29 Jun 2021

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