2212 2212 2212
काफि़या आ Qafia Aa
रदीफ़ रही, Radeef rhi
मुड़ मुड़ के देखो याद तेरी आ रही ।
ऐसे भला तू क्यों मुझे तड़पा रही ।
जो दर्द मेरे दिल को तूने हैं दिए।
हर जख्म की है पीक रिस के आ रही ।
नासूर बन के जख्म मेरे जो बहे ।
अब जीस्त मेरी देख कर घबरा रही ।
तेरे हवाले छोड़ जाऊँ ये जहां ।
अब मौत मेरी पास मेरे आ रही ।
हर इक तमन्ना इस जहां की छोड़कर ,
अपने खुदा से प्रीत मुझ को भा रही।
5.45pm 29 Jun 2021
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