सुस्ती है छाई सब पर,
मौसम चढ़ा जो ऐसा है ।
गर्मी से हुआ हाल बुरा ,
पारा बढ़ा जो ऐसा है।
बदहाल से घूमते हैं सब
बच्चों का मुख मुरझाया है ।
धूप तीखी है हर जगह ,
दिखती कहीं न छाया है।
पडें जो चार बूंदे तो ,
सूखी ये धरती खिले ।
खिल जाए फूल सब,
तन मन को ठंडक मिले।
सुस्ती हो जाए दूर और,
सब अपने काम पर लगें।
खुशियाँ हों फिर हर तरफ ,
और हर तरफ बहारें खिलेंं।
6.45pm 22 June 2021
1 comment:
हाय गर्मी
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