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Wednesday, 27 June 2018

599 उडूँ आकाश में

ऊपर आकाश में पंछी उड़ते हुए।
दूर आसमान की ऊंचाइयों को छूते हुए।
मदमस्त हुए विचरते हैं।
काश मेरे मन को भी ऐसी उड़ान मिले।
जिससे धरती के ,दूर हो शिकवे गिले।
खो जाऊं ऊंची ऊंचाइयों में।
नीचे का कुछ भी ना ध्यान रहे।

ज्यूं उड़ते हैं पंछी ,सब भूल भाल के।
 मैं भी खो जाऊं ,सब शिकवे भूल भाल के।
 मन साफ हो मेरा आकाश की तरह।
शांत हो जाए मन नीर की तरह।
निश्चल हो ऊंचाइयों को छूता रहूं।
धरती के शिकवों को भूल जाऊँ।
पंछियों की तरह में उड़ता फिरूँ।
599 5.15pm 27 Jun 2018 

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