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Sunday, 8 July 2018

Z 610 सकून (Sukoon)

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सकून को क्यों ढूंढता है इधर-उधर।
 कुछ पल ठहर के तो देख।।
दौड़-भाग में रह गया वो पीछे।
 कुछ पल ठहर के तो देख।।

भटकती हुई जिंदगी का मोहताज वो नहीं।
सुकून दौड़ने वालों के सर का ताज नहीं।।
मिल जाएगा जो दौड़ रुक जाएगी।
जिंदगी तेरी, तभी सुकून पाएगी।।
 कुछ पल ठहर के तो देख।

अनजान राहों पर तू बड़ा जा रहा है।
सोचता है आगे, कि सकून आ रहा है।
 पर सुकून चलते रहने का नाम नहीं।
 वो तो ठहरा हुआ, एक पड़ाव है कहीं।।
कुछ पल ठहर के तो देख।

जहां तू रुक गया इस दौड़ में।
पाएगा सुकून को उसी मोड़ पे।।
ठहरा हुआ है वो तेरे इंतजार में।
तू जरा नजर उठा कर तो देख।।
 तू  एक पल ठहर के तो देख।
610 2.12pm 08 July 2018 Sunday

Sukoon ko Kyun Dhoondta Hai Idhar Udhar.
Kuch pal thaher ke tou dekh.
 Daud Bhag main reh gaya wo Piche.
Kuch pal thahar ke to dekh.

Bhatakti Hui Zindagi Ka mohtaj Vo Nahi.
Sukoon Dodne Walon ke Sar kar Taj nahi.
Mil Jayega Jo dod ruk Jayegi.
Zindagi Teri Tabhi Sukoon Payegi.
Kuch Pal thahar........

Anjaan Rahon Par Tu Bada ja raha hai.
Sochta Hai Aage Ki Sukoon aa raha hai.
Par Sukoon Chalte rehne ka naam nahin.
Woh toh thehera Hua Ek padav Hai Kahin.
Kuch pal thehar ke to dekh...

Jahan Tu ruk gaya is dod Mey
Paiga Skoon ko Usi Mod Pe.
 Thehra Hua Hai Woh Tere Intezaar mein.
 Tu Zara nazar utha kar to dekh.
Tu Ek Pal...........

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