9788189331894 53095 BookZindgi1
कब खत्म होगा ये सिलसिला, दिलों को तोड़ने का।
कब ख्याल आएगा ,मुल्कों को जोड़ने का।
व्यापार हो रहा है, इंसानों की जानों का।
हथियार बेच बढ़ गया मुनाफा दुकानों का।
क्यों समझ नहीं पाता इंसान की,मारने से मरना भला।
जो मार ही दीए इंसान, तो दुनिया में क्या बचा।
कैसे, इंसान इंसान को यूं मार गिराता है।
यह सिलसिला तो जानवरों में भी नहीं पाया जाता है।
वो भी अपनी बिरादरी की रक्षा में एकजुट रहते हैं।
फिर कैसे यह इंसान इंसानियत की दुहाई देते हैं।
कहां से यह इंसान तरक्की कर रहा है।
जो मरता था एक सदी जी कर ,आज जवानी में मर रहा है।
धरती भी हरियाली से अपना सिंगार करती थी।
अब बमों से उसका कलेजा छलनी हो रहा है।
समझ नहीं आता क्या चाहते हैं इंसान जिंदगी से।
क्यों उसने मायने बदल दिए हैं बंदगी के।
क्यों अपनी ही जान का दुश्मन बना बैठा है।
क्यों यह बारूद के ढेर पर चढ़कर बैठा है।
क्या हम दिशा नहीं बदल सकते अपनी जिंदगी की।
जहां ना हो कभी यह घटनाएं दरिंदगी की।
क्या तब इंसान जी नहीं पायेगा।
जब यह सिलसिला खत्म हो जाएगा।
621 19July 2018
Kab khatam hoga Yeh Silsila Dilo ko Todne ka.
Kab Khayal aayega Mulkon Ko jodne Ka.
Vyapar Ho Raha Hai insaano ki jaanon ka.
Hathiyar bech Badh Gaya munafa dukano ka.
Kyun samajh nahi pata Insan ki, Marne se mrna Bhala.
Jo mar Hi Diye Insaan, To Duniya Mein Kya bacha.
Kaise, Insan Insan ko you Maar Girata Hai.
Yeh Silsila to Janvron main bhi nahi paya jata hai.
Woh bhi apni biradari ki Raksha me ek Jut Rehte Hain.
Kaisi Yeh Insaan insaaniyat Ki duhaai Dete Hain.
Kahan Se Ye Insaan tarakki kar raha hai.
Jo Marta Tha Ek Sadi Jikar, Jawani Mein mar raha hai.
Dharti bhi Hariyali Se apna singaar karti thi.
Ab Bamon se Uska Kaleja chalni ho raha hai.
Samajh nahi aata kya Chahte Hain Insaan Zindagi Se.
Kyun usne mayne Badal Diye Hain Bandagi ke.
Kyun apni hi Jaan ka Dushman Bana baitha hai.
Kyun Yeh Barood ke Dar Pe Chad Ke baitha hai.
Kya Hum Disha nahi Badal Sakte apni Zindagi Ki.
Jahan Na Ho Kabhi Yeh ghatnayein Darindagi Ki.
Kya Tab Insaan Zee nahi payega.
Jab Ye Silsila khatam ho jayega.
कब खत्म होगा ये सिलसिला, दिलों को तोड़ने का।
कब ख्याल आएगा ,मुल्कों को जोड़ने का।
व्यापार हो रहा है, इंसानों की जानों का।
हथियार बेच बढ़ गया मुनाफा दुकानों का।
क्यों समझ नहीं पाता इंसान की,मारने से मरना भला।
जो मार ही दीए इंसान, तो दुनिया में क्या बचा।
कैसे, इंसान इंसान को यूं मार गिराता है।
यह सिलसिला तो जानवरों में भी नहीं पाया जाता है।
वो भी अपनी बिरादरी की रक्षा में एकजुट रहते हैं।
फिर कैसे यह इंसान इंसानियत की दुहाई देते हैं।
कहां से यह इंसान तरक्की कर रहा है।
जो मरता था एक सदी जी कर ,आज जवानी में मर रहा है।
धरती भी हरियाली से अपना सिंगार करती थी।
अब बमों से उसका कलेजा छलनी हो रहा है।
समझ नहीं आता क्या चाहते हैं इंसान जिंदगी से।
क्यों उसने मायने बदल दिए हैं बंदगी के।
क्यों अपनी ही जान का दुश्मन बना बैठा है।
क्यों यह बारूद के ढेर पर चढ़कर बैठा है।
क्या हम दिशा नहीं बदल सकते अपनी जिंदगी की।
जहां ना हो कभी यह घटनाएं दरिंदगी की।
क्या तब इंसान जी नहीं पायेगा।
जब यह सिलसिला खत्म हो जाएगा।
621 19July 2018
Kab khatam hoga Yeh Silsila Dilo ko Todne ka.
Kab Khayal aayega Mulkon Ko jodne Ka.
Vyapar Ho Raha Hai insaano ki jaanon ka.
Hathiyar bech Badh Gaya munafa dukano ka.
Kyun samajh nahi pata Insan ki, Marne se mrna Bhala.
Jo mar Hi Diye Insaan, To Duniya Mein Kya bacha.
Kaise, Insan Insan ko you Maar Girata Hai.
Yeh Silsila to Janvron main bhi nahi paya jata hai.
Woh bhi apni biradari ki Raksha me ek Jut Rehte Hain.
Kaisi Yeh Insaan insaaniyat Ki duhaai Dete Hain.
Kahan Se Ye Insaan tarakki kar raha hai.
Jo Marta Tha Ek Sadi Jikar, Jawani Mein mar raha hai.
Dharti bhi Hariyali Se apna singaar karti thi.
Ab Bamon se Uska Kaleja chalni ho raha hai.
Samajh nahi aata kya Chahte Hain Insaan Zindagi Se.
Kyun usne mayne Badal Diye Hain Bandagi ke.
Kyun apni hi Jaan ka Dushman Bana baitha hai.
Kyun Yeh Barood ke Dar Pe Chad Ke baitha hai.
Kya Hum Disha nahi Badal Sakte apni Zindagi Ki.
Jahan Na Ho Kabhi Yeh ghatnayein Darindagi Ki.
Kya Tab Insaan Zee nahi payega.
Jab Ye Silsila khatam ho jayega.
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