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Friday, 14 September 2018

678 मायूस निगाहें (Mayoos Nigahen )

करना तो बहुत कुछ चाहता हूं ऐ सनम।
 पर तेरी मायूस निगाहें रोक देती हैं।
मेरे बढ़ते हुए कदमों को, तेरी तरफ,
हर बार, मुड़ने से रोक देती हैं।

मायूसियों से कब किनारा होगा ऐ सनम।
कब तेरी तरफ बढ़ेंगे मेरे कदम।
 कितना भी करूं हौसला तुझे पाने का,
तेरी मायूस निगाहें कदम रोक देती हैं।

क्यों नहीं उबर पाते हो इस उलझन से।
 क्यों किनारे आने की तुझे चाह नहीं।
 कौन सी ऐसी जंजीरें हैं ऐ मेरे सनम।
जो तुझे उबरने से रोक देती है।

 उठ अब तो सब्र का बांध टूटा जाता है।
बाढ़ आने को है मेरी उल्फत की।
 छोड़ मायूसियों को अपनी अब ए सनम।
किनारे पर दोनों अपनी कश्ती मोड़ देते हैं।
678 2.32pm 14 Sept 2018 Friday
Karna toh bahut kuch chahata hoon e Sanam.
Par Teri mayoos Nigahen rok Deti Hain.
Mere badte Hue Kadmo Ko ,Teri Taraf,
Har Baar, Mudne se rok Deti Hain.

Maausion se kab Kinara Hoga e Sanam.
Kab Teri Taraf Badenge Mere Kadam.
Kitna bhi Karoon Honsla Tujhe paane ka.
Teri Mause Nigahien Kadam rok Deti Hain.

Kyon nahi Uber Pata tu Is Uljhan Se.
Kyun kinaare Aane Ki Tujhe Chah nahi.
Kaun si Aisi Jangeeren Hai e Mere Sanam.
 Jo Tujhe Ubrne Se rok Deti Hain.

Ab to Sabar ka Band Tuta jata hai.
 Baad Aane Ko Hai ,Meri Ulfat ki.
Cchod Mausion ko apni ab e Sanam.
Kinare ki taraf Dono Kashti Mod dete hain.

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