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Thursday, 2 August 2018

635 आवाज दे हसीन पलों को (Awaz De Haseen palon ko)

क्यों इंतजार की घड़ियां थी इतनी लंबी।
क्यों गुफ्तगु के पल इतने छोटे हो गए।
क्यों तकरार की घड़ियां थी इतनी लंबी।
क्यों प्यार के पल छोटे हो गए।

फ़लसफ़ा जिंदगी का क्यों है इतना उलझा।
कि सुलझाने में ही उदासीन हो गए।
खुशियां चाही थी मैंने जिंदगी से अपनी।
पर लोग राहों में ऐसे मिले, कि गमगीन हो गए।

 उठ, दे आवाज हसीन पलों को,
कि जिंदगी में बहार आ जाए।
कह सके हम भी जिंदगी से अपनी,
 कि साथ तेरे चल के ,रास्ते हसीन हो गए।
635 Thursday 2 Aug 2018

Kyun Intezaar Ki ghadiyan thi itni lambi.
 Kyun guftugu ke pal itne chote Ho Gaye.
Kyon taqrar ki ghadiyan thi itni lambi.
Kyun Pyar Ke Pal chote Ho Gaye.

Falsafa Zindagi Ka Kyun Hai Itna Ulzha.
 Ki Suljhane Mein Hi udaseen ho gae.

Khushiyan chahi Thi Main Zindagi Se apni.
 Par log Raah Mein Aise Mile,ki gamgeen ho gae.

Uth, de Awaz Haseen palon ko,
Ki Zindagi Mein bahar aa jaye.
 Keh Sakein Hum Bhi Zindagi Se apni,
Ki  Saath Tere Chal Ke, Raste Haseen Ho Gaye.

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