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Tuesday, 27 August 2019

1021 वस्ल ए यार। (Vasl e yaar)

शबनम जो बही आंखों से तेरी, नायाब से मोती निकले।
रूहानियत थी मोतियों में ,नूर का तो उसके क्या कहिए।

रिवायत नहीं कि पास आऊँ मै तेरे, समेट लेते  शबनम।
दूर ही से उनका यूँ नजरें मिलाना और फिर झुकाना ,क्या कहिए।

नवाजिश़ है उनकी, कि वह हम पर नजर रखते हैं।
मुंतजिर है पास आने के उनके, आ जाएंँ जो पास क्या कहिए।

अबर(बादल) ए बारान (बारिश)  एक इधर है एक उधर भी।
 बरस जाए जो हम पर ,जो हो ये इनायत ,तो क्या कहिये।

महाज़बीन  है चेहरा उनका, रहता है  अबर ए जुल्फ से घिरा।
 आ जाए जो बाहर बाद(हवा) के झोंके से ,जो होगा तब मंजर, क्या कहिए।

वस्ल  ए यार में क्या क्या ख्वाब सजाए बैठे हैं हम।
पूरे हो जाएं जो एक दिन यह ख्वाब होगा जो तब हाल, क्या कहिए।
4.30pm 27Aug 2019
Shabnam Jo Bahi Aankhon Se, Nayab se Moti nikale.
Ruhaniat Thi Motiyon Mein ,Nur Ka To Uske Kya Kahiye..

Riwayat Nahin Ki pass aaune Mei Tere,  Samet Leta Shabnam.
Dur Se Unka you Nazre Milana aur Fir Jhukana ,kya Kahiye.

Yah nawazish Hai Unki ki voh Ham par bhi Najar rakhte Hain.
Muntazir Hai pass aane ke unke, Aa Jaaye to ,kya Kahiye.

Abar e baran (rainy cloud) Ek Kidhar ha,i ek Udhar bhi.
Baras Jaaye Jo Ham per ,Jo Ho inayath ,To Kya Kahiye.

Mehzabeen  Hai Chehra Unka ,rahata Hai  Aber e Zulf Se Ghira.
Aa jae Jo Bahar Baad (Hawa) Ke Jhonke se,Jo hoga tab Manjar kya Kahiye.

Vasl e yaar main Kya kya Khwab sajae Baithe Hain.
Pure Ho Jaaye Jo Ek Din yah Khwab ,Kya Hoga  Jo Tab Haal kya Kahiye

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