छील छील पहाड़ों को तूने बनाई राह ।
सोचा नहीं पहाड़ कैसे उठाएगा, अपनी चोटी का भार।
पेड़ पौधे पकड़ के ,बैठे थे मिट्टी और पत्थर ।
उन सबको उखाड़ कर ,तूने बना दिया पथ ।
बिस्फोट कर नीचे, तू अपना रास्ता बनाता गया।
पूरा बोझ बेचारा पहाड़ ,एक टांग पर उठाता गया ।
जगह जगह तुमने उसको अलग-थलग कर दिया।
उसी बात का देख ,आज क्या ये नतीजा हुआ ।
खड़ी पहाड़ियाँ आज हो रही हैं ज़मीदोज़।
तूने कहाँ सोचा था, ऐसा भी होगा किसी रोज ।
तू सोच रहा था यह मानव की तरक्की है ।
नहीं जानता था, अंत करने वाली सृष्टि है ।
संभलना है तो संभल ,प्रकृति का कुछ नहीं जाता।
वो बना लेती है अपने लिए कहीं से भी रास्ता ।
जो तू करता काम अपने, संभाल कर इसको ।
तो यह इनाम न देती, आज प्रकृति तुझको।
4.08pm 30 July 2021
2 comments:
Development exposed. Man is led to his own ruin.
True🙏🏻🙏🏻
Post a Comment