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Friday, 27 August 2021

1751 Ghazal गज़ल : न जाने और किस-किस को, चिढ़ाने की तयारी है

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धुन: भरी दुनिया में आखिर दिल को समझाने कहां जाएं 

        मोहब्बत हो गई जिनको ,वो दीवायेे कहां जाएं।

काफि़या आरी

रदीफ़ है

कहो कुछ तो, कि आखिर क्यों, यह दिल में बेकरारी है।

जो तड़पाती मुझे हरदम ,वफा शायद तुम्हारी है ।


बिताते हैं अकेले ही ,समां अब तो बहारों का ।

जो खशबू  छोड़ते हैं फूल, चलती दिल पे आरी है ।


के अब तो आइना उसका, चुराता है निगाहें भी।

 न जाने और किस-किस को, चिढ़ाने की तयारी है ।


बड़ी उम्मीद थी हमको ,उन्हीं का साथ पाने की ।

बिताई उनकी यादों में, उमर तन्हां ये सारी है।

1.07pm 23 Aug 2021