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Monday, 23 August 2021

1747 Ghazal : गजल : है मजा़ आता ,रूठ जाने पर

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काफि़या : आने ,Qafia :Aane

रदीफ़ : पर,Radeef:  par

मानते हैं कहाँ मनाने पर।

है मजा़ आता ,रूठ जाने पर।


जिंदगी तो है आनी जानी यार ।

क्यों तू हँसता है आने जाने पर।


सूखी आँखें बहा के आँसू, अब।

रोना आता नहीं रुलाने पर।


उसके जैसे लबों पे ताला है ।

होंठ खुलते नहीं हँसाने पर।


हो गई है दबंग दुनिया ये।

कोई डरता नहीं डराने पर ।


क्यों ढही प्यार की इमारत 'गीत'।

उमर जिसको लगी बनाने पर ।

3.15 pm 19 Aug 2021

To be continued.........