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Friday 6 August 2021

1730 Ghazal : गज़ल: पाने मैडल तरस रहा भारत

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मेरे दिल की सुने कहाँ  कोई ।

है न दुनिया में, हमज़ुबाँ कोई।

है बड़ी सूनी जिंदगी मेरी ।

अब मिले काश, कारवाँ कोई।


दूर सपनों का हो जहाँ कोई।

ले चले मुझको, फिर वहाँ कोई।


फूल ही फूल रंग भर के हों।

ऐसा हो पास ,बागवाँ कोई।


हो कोई गमख्वार दुनिया में।

वार दे उसपे ,दो जहाँ कोई।


जिंदगी इक है इम्तिहाँ जी ले ।

छोड़ दे कैसे इम्तिहाँ कोई।


वक्त पर नौकरी जो मिल जाती।

क्यों भला मरता नौजवाँ कोई।


छोड़ सब साथ चलूँ, मैं तेरे

तू दिखा मुझको, कहकशाँ कोई।


कौन किसकी यहाँ पे सोचे है।

हो गया गम में, गुमरहाँ कोई।(lost ones path)


के गुज़ारी है उमर अकेले में ।

आज भी है, न हमरहाँ कोई।(fellow traveller)


मिलते हो जिसमें प्यार और रिश्ते।

है नहीं शहर, में दुकाँ कोई।


आँख दुनिया की है लगी तुझपर।

(दाद उसको मिलेगी दुनिया की)

(पाने मैडल तरस रहा भारत।)

छूले बढ़कर के, आसमाँ कोई।


गिर रहा कौन है यहां कितना 

है नहीं इसकी इंतहाँ कोई।

4.00pm 5 Aug 2021

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