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Friday, 20 August 2021

1744 Ghazal : गज़ल : आए हो चाँद बनके तुम मेरे

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काफि़या : आने ,Qafia :Aane

रदीफ़ : पर,Radeef:  par

हम सिसकते रहे हैं जाने पर। 

ज्यूँ ठिठकते थे तेरे आने पर ।


होश होते हैं गुम, जो तू आए ।

होते ज्यूँ जाम इक लगाने पर।


तेरी आँखों में हम हो जाते गुम ।

पानी होता है ज्यूँ , जमाने पर ।


दर्द सीने का हम दिखाएं क्या ।

ये तो दिखता नहीं दिखाने पर ।


आए हो चाँद बनके तुम मेरे ।

खो नहीं जाना ,ईद आने पर।


सिसकियां कम, न अब तो होनी हैं।

रख दिया सर ,जो उनके शाने पर ।

12.21pm 19 Aug 2021

कल इसी काफि़या,रदीफ़  और बहर पर कुछ और शेर पेश होंगे।


To be continued.........

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