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काफि़या : आने ,Qafia :Aane
रदीफ़ : पर,Radeef: par
हम सिसकते रहे हैं जाने पर।
ज्यूँ ठिठकते थे तेरे आने पर ।
होश होते हैं गुम, जो तू आए ।
होते ज्यूँ जाम इक लगाने पर।
तेरी आँखों में हम हो जाते गुम ।
पानी होता है ज्यूँ , जमाने पर ।
दर्द सीने का हम दिखाएं क्या ।
ये तो दिखता नहीं दिखाने पर ।
आए हो चाँद बनके तुम मेरे ।
खो नहीं जाना ,ईद आने पर।
सिसकियां कम, न अब तो होनी हैं।
रख दिया सर ,जो उनके शाने पर ।
12.21pm 19 Aug 2021
कल इसी काफि़या,रदीफ़ और बहर पर कुछ और शेर पेश होंगे।
To be continued.........
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