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Tuesday 24 August 2021

1748 Ghazal : गज़ल : खुश हूँ मैं उमर ,यूँ बिताने पर

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काफि़या : आने ,Qafia :Aane

रदीफ़ : पर,Radeef:  par

खुश हूँ मैं उमर ,यूँ बिताने पर ।

हाथ रब का रहा है शाने पर।


छुप  हैं जाते झलक दिखा कर वो। 

क्या मजा़ आता है सताने पर ।


आए हैं शेर लौट भारत को ।

धूल दुश्मन को सब चटाने पर ।


आज तक वो न सीख पाए हैं ।

इश्क के पाठ को पढ़ाने पर ।


जल गया आशियाँ बहारों का ।

क्या मिला दोनों को लड़ाने पर ।


चल दिए वो उजाड़ कर जिसको।

था जमाना लगा सजाने पर।


दूसरों की तो बात लगती है ।

खुद नहीं सोचते सुनाने पर।

3.59pm 19 Aug 2021

2 comments:

Rashmi sanjay said...

वाह बहुत खूब

Sangeeta Sharma Kundra said...

धन्यवाद