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काफि़या : आने ,Qafia :Aane
रदीफ़ : पर,Radeef: par
खुश हूँ मैं उमर ,यूँ बिताने पर ।
हाथ रब का रहा है शाने पर।
छुप हैं जाते झलक दिखा कर वो।
क्या मजा़ आता है सताने पर ।
आए हैं शेर लौट भारत को ।
धूल दुश्मन को सब चटाने पर ।
आज तक वो न सीख पाए हैं ।
इश्क के पाठ को पढ़ाने पर ।
जल गया आशियाँ बहारों का ।
क्या मिला दोनों को लड़ाने पर ।
चल दिए वो उजाड़ कर जिसको।
था जमाना लगा सजाने पर।
दूसरों की तो बात लगती है ।
खुद नहीं सोचते सुनाने पर।
3.59pm 19 Aug 2021
2 comments:
वाह बहुत खूब
धन्यवाद
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