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Wednesday, 11 August 2021

1735 Ghazal : गज़ल : हैं बना ली किसी ने दीवारें।

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काफि़या अर Qafia Err

रदीफ़ : है ये Radeef hai ye


सबका अपना ,चुना हुनर है ये।

उस हुनर का ,ही तो असर है ये ।


हैं बना ली किसी ने दीवारें।

बन गया है उसी पे घर है ये।


याद में जिसकी पोंछे हैं आँसू ।

उसके ही प्यार की चुनर है ये।


वो जो आया अभी इधर से था।

क्या पता अब गया किधर है ये।


ढ़ूँढ़ता है तू दर ब दर जिसको।

देख वो हमसफ़र उधर है ये।


कुछ नहीं डरने जैसा बाहर तो।

तेरे भीतर का ही तो डर है ये।

13.25 pm 11 Aug 2021

4 comments:

Ranbir Balwada said...

वाह वाह क्या ग़ज़ल लिखी है, बहुत ख़ूब

"खादिम" said...

Good one

Dr. Sangeeta Sharma Kundra "Geet" said...

धन्यवाद जी

Dr. Sangeeta Sharma Kundra "Geet" said...

Thanks ji