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Wednesday, 25 August 2021

1749 Ghazal : गज़ल : उनसे कहीं ,ज्यादा हमारा रूआब था

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काफि़या : आब,Qafia : Aab 

रदीफ़  था, Radeef : Tha


देखा उसे , करीब से, रुख पर नकाब था ।

नजरें झुकी झुकीं थी,  लबों पे हिजाब था ।


करते रहे वो वादे पे, वादा सदा मगर ।

होता रहा खराब, जो उनका हिसाब था।


बढ़ती रही थी उनकी, उम्र क्या कहें मगर ।

जैसे ही दीद उनकी की, बढ़ता शबाब था ।


वोही नहीं अकेले वहाँ रौबदार थे ।

उनसे कहीं ज्यादा, हमारा रूआब था।


उनकी नजर नजर से मिली और गिर गया ।

आँखों में जो नशा था वो ,जैसे शराब था ।


खिलते थे फूल उनकी, जुबां से ,निकल निकल।

उनका बदन ,भी मखमली, खिलता गुलाब था ।


बातों में ,जो अजीब सी ,उनकी थी इक कशिश।

वैसा नशा ,कहाँ भरी महफिल जनाब था ।

3.31 pm 20 Aug 2021

इसी बहर पर एक प्रसिद्ध फिल्मी गजल है 

     इतनी हसीन इतनी जवां रात क्या करें ।

      जागे हैं कुछ अजीब से जज़बात क्या करें।

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