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काफि़या : आब,Qafia : Aab
रदीफ़ था, Radeef : Tha
देखा उसे , करीब से, रुख पर नकाब था ।
नजरें झुकी झुकीं थी, लबों पे हिजाब था ।
करते रहे वो वादे पे, वादा सदा मगर ।
होता रहा खराब, जो उनका हिसाब था।
बढ़ती रही थी उनकी, उम्र क्या कहें मगर ।
जैसे ही दीद उनकी की, बढ़ता शबाब था ।
वोही नहीं अकेले वहाँ रौबदार थे ।
उनसे कहीं ज्यादा, हमारा रूआब था।
उनकी नजर नजर से मिली और गिर गया ।
आँखों में जो नशा था वो ,जैसे शराब था ।
खिलते थे फूल उनकी, जुबां से ,निकल निकल।
उनका बदन ,भी मखमली, खिलता गुलाब था ।
बातों में ,जो अजीब सी ,उनकी थी इक कशिश।
वैसा नशा ,कहाँ भरी महफिल जनाब था ।
3.31 pm 20 Aug 2021
इसी बहर पर एक प्रसिद्ध फिल्मी गजल है
इतनी हसीन इतनी जवां रात क्या करें ।
जागे हैं कुछ अजीब से जज़बात क्या करें।
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