1222 1222 1222 1222
कहीं तो होता घर मेरा ,कहीं तो मैं भी बस जाता ।
तुझे ही देख कर जीता ,तुझे ही देख मर जाता ।
न तन्हाई ही होती और ,न करता गम बसेरा फिर ।
यूँ ही खिलते सुमन और फिर ,यूँ ही बादल बरस जाता।
तड़प होती न दिल को और, न आहें भरता यादों में ।
तू होती सामने फिर गम , मेरा सारा ये टल जाता ।
हवाओं में फिजाओं में ,जो खुशबू तेरी आ जाती ।
मेरी हर साँस में तेरा इतर फिर घुल के उड़ जाता ।
बहुत है हो चुका अब तो बहाने छोड़ दे सारे।
के आजा मेरी गलियों में ,तेरा क्या इसमें है जाता ।
के गाँएंगे सुनाएंगे ख़ुशी के अब तराने हम।
के होती जिंदगी आसां के घर मेरा भी खिल जाता।
धुन : चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों।
2.37 pm 3 Aug 2021
2 comments:
Aesthetic poem and so close to reality
Thanks ji
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