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Sunday, 3 November 2019

1088 मुस्कुराहट (Muskurahat)

मुस्कुरा कर जो गुजरे वह मेरे घर के आगे से,
कई लोगों की निगाहें उन्हें शक से देखने लगी।

उनकी तो सूरत ही है मुस्कुराहट बिखेरती हुई,
लोग ना जाने क्या-क्या बातें बनाने लगे।

एक तरफ हिदायत देते हैं मुस्कुरा के जीने की,
दूसरी ओर मुस्कुराने पे जाने क्या समझने लगे।

बदनसीबी मेरी ...., कि बात कुछ भी नहीं थी।
हुआ यू़ँ ,कि लोग बेवजह ही अब बातें बनाने लगे।
6.79pm 3 Nov 2019  Sunday


Muskura kar Jo gujre Vo Mere Ghar Ke Aage Se.
Kai Logon ke nigahe unhen shak Se Dekhne Lagin.

Unki to Surat hi hai Muskurahat bikherti Hui,
Log Na Jaane Kya Kya baten Banane Lage.

Ek Taraf Hidayat Dete Hain ,Muskura Ke Jeene Ki.
Dusri aur muskurane per Jaane Kya Samjhane Lage.

 Badnaseebi Meri...... Ki Baat Kuchh Bhi Nahin thi.
Hua Yun ...Ki Log bewajah hi ab baten Banane Lage.


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