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काफि़या अब
रदीफ़ निकलती है
जाने वो घर से कब निकलती है।
बिजलियाँ गिरती जब निकलती है ।
निकले है जब वो घर से बन ठन के ।
आह फिर इक या रब निकलती है।
चाँद तारे सजा बदन पर वो।
सब ये कहते गजब निकलती है ।
जब हो जाता, दीदार है उनका ।
आह फिर इक अजब निकलती है।
जब भी आती है वो ख्यालों में ।
हिचकियांँ बे सबब निकलती है।
हुस्न में इक स्वैग है उसके
हर जगह बा अदब निकलती है
सामने होती जब वो नजरों के
दिन है होता न शब निकलती है।
इक झलक उसकी देखले जो भी ।
उसके दिल की तलब निकलती है
क्यों वो आती नहीं है अब बाहर।
क्यों नहीं घर से अब निकलती है।
होश खो बैठी प्यार में शायद ।
घर से बाहर न अब निकलती है ।
3.11 pm 15 July 2021
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