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Thursday, 15 July 2021

1708 Ghazal गज़ल : जबं हो जाता ,दीदार है उनका

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काफि़या अब

रदीफ़ निकलती है


जाने वो घर से कब निकलती है।

 बिजलियाँ गिरती जब निकलती है ।

 

निकले है जब वो घर से बन ठन के ।

आह फिर इक या रब  निकलती है।


चाँद तारे सजा बदन पर वो।

सब ये कहते गजब निकलती है ।


जब हो जाता, दीदार है उनका ।

आह फिर इक अजब निकलती है।


जब भी आती  है वो ख्यालों में ।

हिचकियांँ बे सबब निकलती है।


हुस्न में इक स्वैग है उसके

 हर जगह बा अदब निकलती है



सामने होती जब वो नजरों के

दिन है होता न शब निकलती है।


इक झलक उसकी देखले जो भी ।

उसके दिल की तलब निकलती है


क्यों वो आती नहीं है अब बाहर।

क्यों नहीं घर से अब निकलती है।


होश खो बैठी प्यार में शायद ।

घर से बाहर न अब निकलती है ।


3.11 pm 15 July 2021

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