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Friday, 23 July 2021

1716 Ghazal : गज़ल : आ भी जाओ कि अब तो बाहों में

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काफि़या अती, Qafia ati

रदीफ़ है, Radeef Hai

लंबे गेसू वो जब झटकती है।

जु़ल्फ़ शाने पे उनके गिरती है ।


जब लगाते वो आँख में काजल।

धार सुरमे की उनपे जचती है।


होंठ उनके युँ सुर्ख होते हैं ।

मखमली शाम जैसे ढलती है।


पाँव नाजुक हैं ,फूल से उनके।

वो कदम धीमे-धीमे रखती है ।


जब वो आती हमारी महफिल में ।

फिर कहाँ अपनी, पेश चलती है ।


सामने उनके रहते हैं, हम तो ।

क्यों नजर उनकी, फिर भटकती है ।


मिलते जब नैन ,नैन से उनके।

हर तमन्ना मेरी मचलती है।


आ भी जाओ कि अब तो बाहों में।

 अब तो दूरी बहुत ये खलती है।


3..55 pm 22July 2021

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