2122 1212 22
काफि़या अती, Qafia ati
रदीफ़ है, Radeef Hai
लंबे गेसू वो जब झटकती है।
जु़ल्फ़ शाने पे उनके गिरती है ।
जब लगाते वो आँख में काजल।
धार सुरमे की उनपे जचती है।
होंठ उनके युँ सुर्ख होते हैं ।
मखमली शाम जैसे ढलती है।
पाँव नाजुक हैं ,फूल से उनके।
वो कदम धीमे-धीमे रखती है ।
जब वो आती हमारी महफिल में ।
फिर कहाँ अपनी, पेश चलती है ।
सामने उनके रहते हैं, हम तो ।
क्यों नजर उनकी, फिर भटकती है ।
मिलते जब नैन ,नैन से उनके।
हर तमन्ना मेरी मचलती है।
आ भी जाओ कि अब तो बाहों में।
अब तो दूरी बहुत ये खलती है।
3..55 pm 22July 2021
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