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Sunday 18 July 2021

1711 Ghazal गज़ल : मिलती दीवानों को जुदाई है

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काफि़या   आई , Wafa Aai

रदीफ़ है ,Radeef.  Hai


रीत कैसी  यहाँ बनाई है।

मिलती दीवानों को जुदाई है।


प्यार का मर्ज  जाने है कैसा।

है नहीं इसकी कोई दवाई है।


जब जुदाई का गम है मिल जाता।

बंदा हो जाता है , सोदाई है।


करती दीवानों को अलग है जो।

 रीत ऐसी  न  क्यों हटाई है।


बीच आ जाए इश्क यारी  में,

इसमें पड़ जाती फिर खटाई है।


करले मेहनत जो तूने करनी है

मिलती आखिर में फिर मिठाई है।

( बाद में मिलती है फिर मिठाई है)


बदला मौसम है इस तरह देखो।

 लेनी पड़ती के अब रजाई है।


6.05pm 18 July 2021

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